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________________ अठारहवाँ शतक : उद्देशक-८ ७४३ या सेवा का कोई कार्य हो, तभी चलते हैं, बिना प्रयोजन गमन नहीं करते और चलते समय भी चपलता, हड़बड़ी और शीघ्रता से रहित ईर्यापथशोधनपूर्वक दायें-बाएं, आगे-पीछे देख कर चलते हैं। ___ कठिन शब्दार्थ—पेच्चेह-कुचलते हो, अभिहणह—मारते हो, टकराते हो, उवद्दवेह—पीड़ित करते हो। दिस्स दिस्स—देख-देख कर। पदिस्स पदिस्स—विशेष रूप से देख कर।' छद्मस्थ मनुष्य द्वारा परमाणु द्विप्रदेशिकादि स्कन्ध को जानने और देखने के सम्बन्ध में प्ररूपणा १६. तए णं भगवं गोयमे समणेणं भगवता महावीरेणं एवं वुत्ते समाणे हट्ठतुट्ठ समणं भगवं महावीरं वंदति नमंसति, वं० २ एवं वदासि—छउमत्थे णं भंते ! मणुस्से परमाणुपोग्गलं किं जाणइ पासइ, उदाहु न जाणइ न पासइ ? गोयमा ! अत्थेगतिए जाणति, न पासति; अत्थेगतिए न जाणइ, न पासइ। __ [१६ प्र.] तत्पश्चात् श्रमण भगवान् महावीर के द्वारा इस प्रकार कहे जाने पर हष्ट-तुष्ट होकर भगवान् गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दन-नमस्कार कर इस प्रकार पूछा भगवन् ! क्या छद्मस्थ मनुष्य परमाणु-पुद्गल को जानता-देखता है अथवा नहीं जानता-नहीं देखता है? [१६ उ.] गौतम ! कोई (छद्मस्थ मनुष्य) जानता है, किन्तु देखता नहीं, और कोई जानता भी नहीं और देखता भी नहीं। १७. छउमत्थे णं भंते ! मणूसे दुपएसियं खंधं किं जाणति पासइ ? एवं चेव। [१७ प्र.] भगवन् ! क्या छद्मस्थ मनुष्य द्विप्रदेशी स्कन्ध को जानता-देखता है, अथवा नहीं जानता, नहीं देखता है? [१७ उ.] गौतम! इसी प्रकार (पूर्ववत्) जानना चाहिए। १८. एवं जाव असंखेजपएसियं । [१८] इसी प्रकार यावत् असंख्यातप्रदेशी स्कन्ध तक (को जानने देखने के विषय में) कहना चाहिए। १९. छउमत्थे णं भंते ! मणूसे अणंतपएसियं खधं किं० पुच्छा ? गोयमा ! अत्थेगतिए जाणइ पासइ; अत्थेगतिए जाणइ, न पासइ; अत्थेगतिए न जाणइ, पासइ; १. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ७५५ (ख) भगवती. अ. विवेचन (पं. घेवरचन्दजी) भा.६, पृ. २७४० २. (क) वही, भा. ६, पृ. २७३८-२७३९ (ख) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ७५५
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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