SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 767
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७३४ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र णो इणठे समठे? असुरकुमाराणं देवाणं निच्छं निउब्विया पहरणरयणा पन्नत्ता। [४४ प्र.] भगवन् ! जिस प्रकार देवों के लिए कोई भी वस्तु स्पर्शमात्र से शस्त्ररत्न के रूप में परिणत हो जाती है, क्या उसी प्रकार असुरकुमारदेवों (भवनपति-असुरों) के भी होती है ? [४४ उ.] गौतम! उनके लिए यह बात शक्य नहीं है। क्योंकि असुरकुमारदेवों के तो सदा वैक्रियकृत शस्त्ररत्न होते हैं। विवेचन—देवासुर-संग्राम और उनमें दोनों ओर से प्रयुक्त शस्त्रों का निरूपण—प्रस्तुत तीन सूत्रों (४२ से ४४ तक) में देवासुरों के संग्राम से सम्बद्ध चर्चा है। देव और असुर कौन ?—प्रस्तुत में देव शब्द से ज्योतिष्क और वैमानिक देवों का और असुर शब्द से भवनपति और वाणव्यन्तर देवों का ग्रहण किया गया है। देवासुर-संग्राम क्यों और किन शस्त्रों से ?—सनातन धर्म के ग्रन्थों में देवासुर संग्राम अथवा देवदानव-संग्राम अत्यन्त प्रसिद्ध है। जैनशास्त्रों में यद्यपि सभी जाति के देवों के लिए 'देव' शब्द ही प्रायः प्रयुक्त है, किन्तु यहाँ असुर शब्द नीची जाति के देवों के लिए है। वे ईर्ष्या, द्वेष आदि के वश उच्चजातीय देवों के साथ युद्ध करते रहते हैं। संग्राम शस्त्रसाध्य है। इसलिए यहाँ प्रश्न किया गया है कि देवों और असुरों में संग्राम छिड़ जाने पर उनके पास शस्त्र कहाँ से आते हैं ? इस प्रश्न के उत्तर में कहा गया है कि देवों के अतिशय पुण्य के कारण स वस्त का, यहाँ तक कि तिनके या पत्ते का भी वे शस्त्रबद्धि से स्पर्श करते हैं, वही उनके शस्त्ररूप में परिणत हो जाता है, अर्थात् वही तीक्ष्ण शस्त्र का कार्य करता है। किन्तु उसकी अपेक्षा असुरों (भवनपति वाणव्यन्तर . देवों) के मन्दतर पुण्य होने से उनके शस्त्र पहले से नित्य विकुर्वित होते हैं, वे ही काम में आते हैं, अन्य कोई भी वस्तु उनके छूने से शस्त्ररूप में परिणत नहीं होती। १. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ७५३ (ख) भगवती. (विवेचन) भा.६, (पं. घेवरचन्दजी) पृ. २७३० २ (क) भगवती. वृत्ति, पत्र ७५३ (ख) "वर्तमान में भी कई आध्यात्मिक या दैवीशक्तिसम्पन्न व्यक्ति हैं, जो फूल की नाजुक पंखुड़ी या कागज के टुकड़े को भी शस्त्र के रूप में परिणत कर उससे ऑपरेशन कर सकते हैं । रमन बाबा उर्फ रमन बच्चन मुजफ्फरपुर (बिहार) के निवासी हैं। वे अपनी आध्यात्मिक शक्ति के प्रभाव से फूल की नाजुक पंखुड़ी या फिर कागज के टुकड़े से जिस्म का कोई भी हिस्सा काट कर ऑपरेशन कर सकते हैं। एक अलौकिक शक्ति' भगवती द्वारा प्राप्त आध्यात्मिक शक्ति के जरिए वे इस तरीके से ऑपरेशन करते हैं। रमन बाबा का कहना है कि इस तरीके से उन्होंने लगभग ८००० ऑपरेशन किये हैं। और वे भी सिर्फ दस मिनट में। इसमें मरीज को कोई दर्द नहीं हुआ और ऑपरेशन का निशान भी कुछ ही देर में गायब हो गया। डाक्टरों ने जिन्हें लाइलाज कह दिया था, ऐसे कैंसर, लकवा, अल्सर, ब्रेनहेमरेज आदि रोगों से पीड़ित रोगियों को ठीक किया है इस स्त्रीच्युअल सर्जरी से।" -नवभारत टाइम्स ३.१.१९८५ जब दैवी शक्ति सम्पन्न मनुष्य भी ऑपरेशन के शस्त्र के रूप में कागज या फूल की पंखुड़ी को प्रयुक्त कर सकते हैं, तब अतिशय पुण्यसम्पन्न देवों के लिए तृण, काष्ठ आदि को छूने से शस्त्र बन जाना असम्भव नहीं है। -सं.
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy