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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र श्रमणोपासक के समान समझना चाहिए। यावत्-अरुणाभ विमान में देवरूप में उत्पन्न होकर, यावत् सर्वदुःख का अन्त करेगा।
विवेचन—गौतम स्वामी द्वारा मद्रुक की प्रवज्या एवं मुक्ति आदि से सम्बद्ध प्रश्न का भगवान् द्वारा समाधान—प्रस्तुत सू. ३७ में मद्रुक श्रमणोपासक द्वारा प्रव्रज्या-ग्रहण में असमर्थ होने पर भी मद्रुक के उज्ज्वल भविष्य का कथन किया गया है। महर्द्धिक देवों द्वारा संग्रामनिमित्त सहस्ररूपविकुर्वणासम्बन्धी प्रश्न का समाधान
३८. देवे णं भंते ! महिड्डीए जाव महासोक्खे रूवसहस्सं विउव्वित्ता पभू अन्नमन्नेणं सद्धिं संगाम संगामित्तए ?
हंता पभू।
[३८ प्र.] भगवन् ! महर्द्धिक यावत् महासुख वाला देव, हजार रूपों की विकुर्वणा करके परस्पर एक दूसरे के साथ संग्राम करने में समर्थ है?
[३८ उ.] हाँ गौतम! (वह ऐसा करने में) समर्थ है। ३९. ताओ णं भंते ! बोंदीओ किं एंगजीवफुडाओ, अणेगजीवफुडाओ ? गोयमा ! एगजीवफुडाओ, णो अणेगजीवफुडाओ।
[३९ प्र.] भगवन् ! वैक्रियकृत वे शरीर, एक ही जीव के साथ सम्बद्ध होते हैं, या अनेक जीवों के साथ सम्बद्ध? __[३९ उ.] गौतम! (वे सभी वैक्रियकृत शरीर) एक ही जीव से सम्बद्ध होते हैं, अनेक जीवों के साथ नहीं। - ४०. ते णं भंते ! तेसिं बोंदीणं अंतरा किं एगजीवफुडा अणेगजीवफुडा?
गोयमा ! एगजीवफुडा, नो अणेगजीवफुडा।
[४० प्र.] भगवन् ! उन (वैक्रियकृत) शरीरों के बीच का अन्तराल-भाग क्या एक जीव से सम्बद्ध होता है, या अनेक जीवों से सम्बद्ध ?
[४० उ.] गौतम! उन शरीरों के बीच का अन्तराल भाग एक ही जीव से सम्बद्ध होता है, अनेक जीवों से सम्बद्ध नहीं।
विवेचन–महर्द्धिक देव द्वारा वैक्रियकृत अनेक शरीर : एक जीव से सम्बद्ध—देवों के द्वारा परस्पर संग्राम के निमित्त वैक्रियशक्ति से बनाए हुए हजारों शरीर केवल एक ही जीव (वैक्रियकर्ता) से सम्बन्धित होते हैं।
१. पाठन्तर-महेसक्खे