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________________ अठारहवाँ शतक : उद्देशक-३ ६९७. १४. भावबंधे णं भंते ! कतिविधे पन्नत्ते ? मागंदियपुत्ता ! दुविहे पन्नत्ते, तं जहा—मूलपगडिबंधे य उत्तरपगडिबंधे य। [१४ प्र.] भगवन् ! भावबन्ध कितने प्रकार का कहा गया है ? [१४ उ.] माकन्दिकपुत्र! वह दो प्रकार का कहा गया है, यथा—मूलप्रकृतिबन्ध और उत्तरप्रकृतिबन्ध। १५. नेरइयाणं भंते ! कतिविहे भावबंध पन्नत्ते ? . मागंदियपुत्ता ! दुविहे भावबंधे पन्नत्ते, तं जहा—मूलपगडिबंधे य उत्तरपगडिबंधे य। [१५ प्र.] भगवन् ! नैरयिक जीवों का कितने प्रकार का भावबन्ध कहा गया है ? [१५ उ.] माकन्दिकपुत्र! उनका भावबन्ध दो प्रकार का कहा गया है, यथा—मूलप्रकृतिबन्ध और उत्तरप्रकृतिबन्ध। १६. एवं जाव वेमाणियाणं। [१६] इसी प्रकार वैमानिकों तक (के भावबन्ध के विषय में कहना चाहिए)। १७. नाणावरणिज्जस्स णं भंते ! कम्मस्स कतिविहे भावबंधे पन्नत्ते ? मागंदियपुत्ता ! दुविहे भावबंधे पन्नत्ते, तं जहा—मूलपगडिबंधे य उत्तरपगडिबंधे य। [१७ प्र.] भगवन् ! ज्ञानावरणीयकर्म का भावबन्ध कितने प्रकार का कहा गया है। [१७ उ.] माकन्दिकपुत्र! ज्ञानावरणीयकर्म का भावबन्ध दो प्रकार का कहा गया है, यथा—मूलप्रकृतिबन्ध और उत्तरप्रकृतिबन्ध। १८. नेरइयाणं भंते ! नाणावरणिज्जस्स कम्मस्स कतिविधे भावबंधे पण्णत्ते ? मागंदियपुत्ता! दुविहे भावबंधे पन्नत्ते, तं जहा—मूलपगडिबंधे य उत्तरपगडिबंधे य। [१८ प्र.] भगवन् ! नैरयिक जीवों के ज्ञानावरणीयकर्म का भावबन्ध कितने प्रकार का कहा गया है ? [१८ उ.] माकन्दिकपुत्र! उनके ज्ञानावरणीयकर्म का भावबन्ध दो प्रकार का कहा गया है, यथा मूलप्रकृतिकबन्ध और उत्तरप्रकृतिकबन्ध। १९. एवं जाव वेमाणियाणं। [१९] इसी प्रकार वैमानिकों तक के ज्ञानावरणीयकर्मसम्बन्धी भावबन्ध के लिये कहना चाहिए। २०. जहा नाणावरणिज्जेणं दंडओ भणिओ एवं जाव अंतराइएणं भाणियव्वो।। [२०] जिस प्रकार ज्ञानावरणीयकर्म-सम्बन्धी दण्डक कहा है, उसी प्रकार अन्तरायकर्म तक (दण्डक) कहना चाहिए।
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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