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________________ ६९८ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र विवेचन-द्रव्यबन्ध, भावबन्ध और उसके भेद-प्रभेद-प्रस्तुत ११ सूत्रों (सू. १० से २० तक) में बन्ध के दो भेद-द्रव्य और भावबन्ध करके उनके भेद-प्रभेद तथा भावबन्धजनित प्रकारों का निरूपण किया गया है। द्रव्यबन्ध : यहाँ कौन-सा ग्राह्य है ?—द्रव्यबन्ध आगम, नोआगम आदि के भेद से अनेक प्रकार का है, किन्तु यहाँ केवल 'उभय-व्यतिरिक्त', द्रव्यबन्ध का ग्रहण करना चाहिए। तेल आदि स्निग्ध पदार्थों या रस्सी आदि द्रव्य का परस्पर बन्ध होना द्रव्यबन्ध है। , भावबन्ध : स्वरूप, प्रकार और ग्राह्यभावबन्ध —भाव अर्थात् मिथ्यात्व आदि भावों के द्वारा अथवा उपयोग भाव से अतिरिक्त भाव का जीव के साथ बन्ध होना भावबन्ध कहलाता है—भावबन्ध के आगमतः और नो-आगमतः, ये दो भेद हैं। यहाँ नो-आगमत: भावबन्ध का ग्रहण विवक्षित है। प्रयोगबन्ध, विस्रसाबन्ध : स्वरूप और प्रकार—जीव के प्रयोग से द्रव्यों का बन्ध होना प्रयोगबन्ध है और स्वाभाविक रूप से बन्ध होना विस्रसाबन्ध है। विस्रसाबन्ध के दो भेद हैं—सादि-विस्रसाबन्ध और अनादि-विस्रसाबन्ध। बादलों आदि का परस्पर बन्ध होना (मिल जाना-जुड़ जाना) सादि-विस्रसाबन्ध है और धर्मास्तिकाय आदि का परस्पर बन्ध, अनादि-विस्रसाबन्ध कहलाता है। प्रयोगबन्ध के दो भेद हैं—शिथिलबन्ध और गाढबन्ध। घास के पूले आदि का बन्ध शिथिलबन्ध है और रथचक्रादि का बन्ध गाढबन्ध है। भावबन्ध के भेद-भावबन्ध के दो भेद हैं—मूलप्रकृतिबन्ध और उत्तरप्रकृतिबन्ध। मूलप्रकृतिबन्ध के ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय आदि ८ भेद हैं तथा उत्तरप्रकृतिबन्ध के कुल १४८ भेद हैं। उनमें से १२० प्रकृतियों का बन्ध होता है। जिस दण्डक में जितनी प्रकृतियों का बन्ध होता हो, वह कहना चाहिए। यही भेद नैरयिकों के मूल-उत्तरप्रकृतिबन्ध के समझने चाहिए।' जीव एवं चौवीस दण्डकों द्वारा किये गए, किये जा रहे तथा किये जाने वाले पापकर्मों के नानात्व (विभिन्नत्व) का दृष्टान्तपूर्वक निरूपण २१. [१] जीवाणं भंते ! पावे कम्मे जे य कडे जाव जे य कजिस्सइ अस्थि याइं तस्स केयि णाणत्ते ? हंता, अत्थि। __ [२१-१ प्र.] भगवन् ! जीव ने जो पापकर्म किया है, यावत् करेगा क्या उनमें परस्पर कुछ भेद (नानात्व) ह .. . [२१-१ उ.] हाँ, माकन्दिकपुत्र! (उनमें परस्पर भेद) है। १. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ७४३ (ख) भगवती. उपक्रम (पं. मुनि श्री जनकरायजी तथा जगदीशमुनिजी म.) पृ. ३७५
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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