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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
[ ७६ ] शेष स्थानों में आहारक के समान हैं।
७७. अभवसिद्धीओ सव्वत्थ एगत्त-पुहत्तेणं नो चरिमे, अचरिमे ।
[७७] अभवसिद्धिक सर्वत्र एकवचन और बहुवचन से चरम नहीं, अचरम हैं ।
७८. नोभवसिद्धीय- नोअभवसिद्धीयजीवा सिद्धा य एगत्त-पुहत्तेणं जहा अभवसिद्धीओ ।
[ ७८ ] नोभवसिद्धिक-नोअभवसिद्धिक जीव और सिद्ध, एकवचन और बहुवचन से अभवसिद्धिक के समान हैं ।
७९. सण्णी जहा आहारओ (सु. ७२ ) ।
[७९] संज्ञी जीव (सू. ७२ में उल्लिखित) आहारक जीव के समान हैं।
८०. एवं असण्णी वि ।
[८०] इसी प्रकार असंज्ञी भी (आहारक के समान है ) ।
८१. नोसन्नी - नोअसन्नी जीवपदे सिद्धपदे य अचरिमो, मणुस्सपदे चरिमो, एगत्त-पुहत्तेणं । [८१] नोसंज्ञी - नोअसंज्ञी जीवपद और सिद्धपद में अचरम हैं, मनुष्यपद में, एकवचन और बहुवचन से चरम हैं।
८२. सलेस्सो जाव सुक्कलेस्सो जहा आहारओ (सु. ७२), नवरं जस्स जा अत्थि ।
[८२] सलेश्यी, यावत् शुक्ललेश्यी की वक्तव्यता आहारकजीव (सू. ७२ में वर्णित) के समान है। विशेष यह है कि जिसके जो लेश्या हो, वही कहनी चाहिए।
८३. अलेस्सो जहा नोसण्णी - नोअसण्णी ।
[८३] अलेश्यी, नोसंज्ञी - नोअसंज्ञी के समान हैं ।
८४. सम्मद्दिट्ठी जहा अणाहारओ (सू. ७३-७४)।
[८४] सम्यग्दृष्टि, (सू. ७३-७४ में उल्लिखित) अनाहारक के समान हैं।
८५. मिच्छादिट्ठी जहा आहारओ (सु. ७२ ) ।
[८५] मिथ्यादृष्टि, (सू. ७२ में उल्लिखित) अनाहारक के समान हैं ।
८६. सम्मामिच्छद्दिट्ठी एगिंदिय - विगलिंदियवज्जं सिय चरिमे, सिय अचरिमे, पुहत्तेणं चरिमा वि, अचरिमा वि।
[८६] सम्यगमिथ्यादृष्टि, एकेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय को छोड़कर (एकवचन से) कदाचित् चरम और कदाचित् अचरम हैं । बहुवचन से वे चरम भी हैं और अचरम भी हैं।