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सत्तरसमो उद्देसओ : 'अग्गि'
सत्तरहवाँ उद्देशक : अग्निकुमार ( सम्बन्धी वक्तव्यता) अग्निकुमारों में समाहारादि सप्त द्वार तथा लेश्या एवं अल्पबहुत्वादि-प्ररूपणा
१. अग्गिकुमारा णं. भंते ! सव्वे समाहारा ? एवं चेव। सेवं भंते ! सेवं भंते ! । ॥सत्तरसमे सए : सत्तरसमो उद्देसओ समत्तो॥ १७-१७॥
॥सत्तरसमं सयं समत्तं ॥१७॥ [१ प्र.] भगवन्! क्या सभी अग्निकुमार समान आहार वाले हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न। [१ उ.] गौतम! पूर्वोक्त प्रकार से सभी कथन समझना चाहिए। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है; यों कह कर (गौतमस्वामी) यावत् विचरते हैं।
॥ सत्तरहवाँ शतक : सत्तरहवाँ उद्देशक समाप्त॥ ॥ सत्तरहवां शतक सम्पूर्ण॥
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