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नवमो उद्देसओ : 'दग' नौवाँ उद्देशक : (ऊर्ध्व लोकस्थ) अप्कायिक (वक्तव्यता) सौधर्मकल्प में मरणसमुद्घात करके सप्त नरकादि में उत्पन्न होने योग्य अप्कायिक जीव की उत्पत्ति और पुद्गलग्रहण में पहले क्या, पीछे क्या ?
१. आउकाइए णं भंते ! सोहम्मे कप्पे समोहए, समोहन्नित्ता जे भविए इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए घणोदधिवलयेसु आउकाइयत्ताए उववजित्तए से णं भंते! • ?
सेसं तं चेव।
[१ प्र.] भगवन् ! जो अप्कायिक जीव, सौधर्मकल्प में मरण-समुद्घात करके इस रत्नप्रभापृथ्वी के घनोदधिवलयों में अप्कायिक रूप से उत्पन्न होने के योग्य हैं,........... इत्यादि प्रश्न ? .
[१ उ.] गौतम! शेष सभी पूर्ववत्, यावत् अधःसप्तमपृथ्वी तक जानना चाहिए। २. एवं जाव अहेसत्तमाए। जहा सोहम्मआउकाइओ एवं जाव ईसिपब्भाराआउकाइओ जाव अहेसत्तमाए उववातेयव्वो।
[२] जिस प्रकार सौधर्मकल्प के अप्कायिक जीवों का नरक-पृथ्वियों में उत्पाद कहा, उसी प्रकार ईषत्प्राग्भारा पृथ्वी तक के अप्कायिक जीवों का उत्पाद अधःसप्तम पृथ्वी तक जानना चाहिए। सेवं भंते! सेवं भंते! त्ति।
॥ सत्तरसमे सए : नवमो उद्देसओ समत्तो॥१७-९॥ भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है; यों कहकर, (गौतमस्वामी) विचरते हैं। ॥ सत्तरहवां शतक : नौवाँ उद्देशक समाप्त॥
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