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________________ सत्तरहवाँ शतक : उद्देशक-४ ६३७ (५) ये क्रियाएँ अनुक्रम पूर्वक कृत होती हैं। समय, देश और प्रदेश की अपेक्षा से जीव और चौवीस दण्डकों में प्राणातिपातादि क्रियाप्ररूपणा ८. जं समयं णं भंते ! जीवाणं पाणातिवाएणं किरिया कजति सा भंते! किं पुट्ठा कजइ, अपुट्ठा कज्जइ ? एवं तहेव जाव वत्तव्वं सिया। जाव वेमाणियाणं। [८ प्र.] भगवन् ! जिस समय जीव प्राणातिपातिकी क्रिया करते हैं, उस समय वे स्पृष्ट क्रिया करते हैं या अस्पृष्ट क्रिया करते हैं? [८ उ.] गौतम ! पूर्वोक्त प्रकार से—'अनानुपूर्वीकृत नहीं की जाती है,' (यहाँ तक) कहना चाहिए। इसी प्रकार वैमानिकों तक जानना चाहिए। ९. एवं जाव परिग्गहेणं। एते वि पंच दंडगा १०। [९] इसी प्रकार पारिग्रहिकी क्रिया तक कहना चाहिए। ये पूर्ववत् पांच-दण्डक होते हैं ॥५॥ १०. जं देसं णं भंते ! जीवाणं पाणातिवाएणं किरिया कज्जइ० ? एवं चेव जाव परिग्गहेणं। एवं एते वि पंच दंडगा १५। [१० प्र.] भगवन् ! जिस देश (क्षेत्रविभाग) में जीव प्राणातिपातिकी क्रिया करते हैं, उस देश में वे स्पृष्ट क्रिया करते हैं या अस्पृष्ट क्रिया करते हैं ? [१० उ.] गौतम! पूर्ववत् पारिग्रहिकी क्रिया तक जानना चाहिए । इसी प्रकार ये (पूर्ववत्) पांच दण्डक होते हैं ॥ १५॥ ११. जं पदेसं णं भंते! जीवाणं पाणातिवाएणं किरिया कज्जइ सा भंते! किं पुट्ठा कज्जइ. ? एवं तहेव दंडओ। [११ प्र.] भगवन् ! जिस प्रदेश में जीव प्राणातिपातिकी क्रिया करते हैं, उस प्रदेश में स्पृष्ट क्रिया करते हैं या अस्पृष्ट क्रिया करते हैं? [११ उ.] गौतम! पूर्ववत् दण्डक कहना चाहिए। १२. एवं जाव परिग्गहेणं। एवं एए वीसं दंडगा। [१२] इस प्रकार पारिग्रहिकी क्रिया तक जानना चाहिए। यों ये सब मिला कर वीस दण्डक हुए। १. भगवती. (व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र) खण्ड १ (श्री आगम प्र. समिति), पृ. ११०-१११
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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