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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
गोयमा ! जणं जीवा ओरालियसरीरे वट्टमाणा ओरालियसरीरपायोग्गाइं दव्वाइं ओरालियसरीरत्ताए परिणामेमाणा ओरालियसरीरचलणं चलिंसु वा, चलंति वा, चलिस्संति वा, से तेणढेणं जाव ओरालियसरीरचलणा, ओरालियसरीरचलणा।
[१५ प्र.] भगवन् ! औदारिकशरीर-चलना को औदारिकशरीर-चलना क्यों कहा जाता है ?
[१५ उ.] गौतम! जीवों ने औदारिकशरीर में वर्तते हुए, औदारिकशरीर के योग्य द्रव्यों को, औदारिकशरीर रूप में परिणमाते हुए भूतकाल में औदारिकशरीर की चलना की थी, वर्तमान में चलना करते हैं, और भविष्य में चलना करेंगे, इस कारण से हे गोतम ! औदारिकशरीर से सम्बन्धित चलना को औदारिकशरीर-चलना कहा जाता है।
१६. से केणद्वेणं भंते! एवं वुच्चइ-वेउब्वियसरीरचलणा, वेउब्वियसरीरचलणा ? एवं चेव, नवरं वेउव्वियसरीरे वट्टमाणा। [१६ प्र.] भगवन् ! वैक्रियशरीर-चलना को वैक्रियशरीर-चलना किस कारण कहा जाता है ?
[१६ उ.] पूर्ववत् (औदारिकशरीर-चलना के समान) समग्र कथन करना चाहिए। विशेष यह हैऔदारिकशरीर के स्थान पर 'वैक्रियशरीर में वर्तते हुए' कहना चाहिए।
१७. एवं जाव कम्मगसरीरचलणा। [१७] इसी प्रकार कार्मणशरीर चलना तक कहना चाहिए। १८. से केणढेणं भंते ! एवं वुच्चइ–सोतिंदियचलणा, सोतिंदियचलणा ?
गोयमा ! जंणं जीवा सोतिदिए वट्टमाणा सोतिदियपायोग्गाई दव्वाइं सोतिदियत्ताए परिणामेमाणा सोतिंदियचलणं चलिंसु वा, चलंति वा, चलिस्संति वा, से तेणढेणं जाव सोतिंदियचलणा सोतिंदियचलणा।
[१८ प्र.] भगवन् ! श्रोत्रेन्द्रिय-चलना को श्रोत्रेन्द्रिय-चलना क्यों कहा जाता है ?
[१८ उ.] गौतम! चूंकि श्रोत्रेन्द्रिय को धारण करते हुए जीवों ने श्रोत्रेन्द्रिय योग्य द्रव्यों को श्रोत्रेन्द्रिय-रूप में परिणमाते हुए श्रोत्रेन्द्रियचलना की थी, वर्तमान में (श्रोत्रेन्द्रिय-चलना) करते हैं और भविष्य में करेंगे, इसी कारण श्रोत्रेन्द्रिय-चलना को श्रोत्रेन्द्रिय-चलना कहा जाता है।
१९. एवं जाव फासिंदियचलणा। [१९] इसी प्रकार यावत् स्पर्शेन्द्रिय चलना तक जानना चाहिए। २०. से केणढेणं भंते ! एवं वुच्चइ–मणजोगचलणा, मणजोगचलणा? गोयमा! जंणं जीवा मणजोए वट्टमाणा मणजोगप्पायोग्गाई दव्वाइं मणजोगत्ताए परिणामेमाणा