________________
सतरहवाँ शतक : उद्देशक - ३
[११ प्र.] भगवन्! चलना कितने प्रकार की है ?
[११ उ.] गौतम! चलना तीन प्रकार की है, यथा— शरीरचलना, इन्द्रियचलना और योगचलना ।
१२. सरीरचलणा णं भंते ! कतिविहा पन्नता ?
गोयमा ! पंचविहा पन्नत्ता, तं जहा — ओरालियसरीरचलणा जाव कम्मगसरीरचलणा ।
[१२ प्र.] भगवन् ! शरीरचलना कितने प्रकार की है ?
[१२ उ.] गौतम ! शरीरचलना पांच प्रकार की है, यथा—— औदारिकशरीरचलना, यावत् कार्मणशरीरचलना ।
१३. इंदियचलणा णं भंते ! कतिविहा पन्नत्ता ?
गोयमा ! पंचविहा पन्नता, तं जहा – सोतिंदियचलणा जाव फासिंदियचलणा ।
[१३ प्र.] भगवन् ! इन्द्रियचलना कितने प्रकार की कही गई है ?
[१३ उ.] गौतम ! इन्द्रियचलना पांच प्रकार की कही गई है, यथा— श्रोत्रेन्द्रियचलना यावत् स्पशेन्द्रिय
चलना ।
१४. जोगचलणा णं भंते ! कतिविहा पन्नत्ता ?
गोयमा ! तिविहा पन्नत्ता, तं जहा -- मणोजोगचलणा वइजोगचलणा कायजोगचलणा ।
[ १४ प्र.] भगवन् ! योगचलना कितने प्रकार की कही गई है ?
[१४ उ.] गौतम ! योगचलना तीन प्रकार की कही गई है, यथा— मनोयोगचलना, वचनयोगचलना और काययोगचलना ।
६३१
विवेचन—– त्रिविध चलना और उसके प्रभेद - सामान्य कम्पन या स्पन्दन को एजना कहते हैं और वही एजना विशेष स्पष्ट हो तो उसे चलना कहते हैं । चलना शरीर, इन्द्रिय और योग से होती है, इसलिए इसके मूलभेद तीन कहे गए हैं, और उत्तरभेद १३ हैं— (पांच शरीर, पांच इन्द्रिय और तीन योग ) ।
शरीरचलना : स्वरूप —— शरीर - औदारिकादिशरीर की चलना, अर्थात् — उसके योग्य पुद्गलों का तद्रूप - परिणमन में जो व्यापार हो, वह शरीरचलना है। इसी प्रकार इन्द्रिय-चलना और योगचलना का भी स्वरूप समझ लेना चाहिए।
शरीरादि चलना के स्वरूप का सयुक्तिक निरूपण
१५. से केणट्ठेणं भंते ! एवं वुच्चइ–ओरालियसरीरचलणा, ओरालियसरीरचलणा ?
१. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ७२७
(ख) भगवती, (हिन्दीविवेचन) भा. ५, पृ. ६१९
२. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ७२७