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________________ ग्यारहवाँ शतक : उद्देशक-९ विवेचन—शिव राजा से सम्बन्धित परिचय प्रस्तुत ५ सूत्रों (१ से ५ तक) में शिवराजा से सम्बन्धित ५ बातों का अतिदेशपूर्वक परिचय दिया गया है—(१) हस्तिनापुर नगर का वर्णन, (२) सहस्राम्रवन उद्यान का वर्णन, (३) शिव राजा का वर्णन, (४) शिव राजा की पटरानी धारिणी का वर्णन और (५) राजकुमार शिवभद्र-वर्णन। कठिन शब्दों का अर्थ-सव्वोउयपुष्फफलसमिद्धे-सभी ऋतुओं के पुष्पों एवं फलों से समृद्ध । णंदणवणसन्निगासे–नन्दनवन के समान। सादुफले-स्वादिष्ट फल वाला। महयाहिमवंत-महान् हिमवान् पर्वत के समान । अत्तए—आत्मज-पुत्र । पच्चुवेक्खमाणे-देखभाल करता हुआ। शिव राजा का दिक्प्रोक्षिक-तापस-प्रव्रज्याग्रहण-संकल्प ६. तए णं तस्स सिवस्स रण्णो अन्नया कदायि पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि रज्जधुरं चिंत्तेमाणस्स अयमेयारूवे अज्झत्थिए जाव समुप्पज्जित्था—'अत्थि ता मे पुरा पोराणाणं जहा तामलिस्स' (स. ३ उ. १ सु. ३६) जाव पुत्तेहिं वड्ढामि, पसूहि वड्ढामि, रज्जेणं वड्ढामि, एवं रटेणं बलेणं वाहणेणं कोसेणं कोट्ठागारेणं पुरेणं अंतेउरेणं वड्ढामि, विपुलधण-कणग-रयण० जाव संतसारसावदेजेणं अतीव अतीव अभिवड्ढामि, तं किं णं अहं पुरा पोराणाणं जाव एगंतसोक्खयं उवेहमाणे विहरामि ? तं जाव ताव अहं हिरण्णेणं वड्ढामि तं चेव जाव अभिवड्ढामि, जावं च मे सामंतरायाणो वि वसे वटंति, तावता मे सेयं कल्लं पाउप्पभायाए जाव जलंते सुबहुं लोहीलोहकडाहकडुच्छुयं तंबियं तावसभंडयं घडावेत्ता, सिवभई कुमारं रज्जे ठावित्ता,तं सुबहुं लोहीलोहकडाहकडुच्छुयं तंबियं तावसभंडयं गहाय जे इमे गंगाकूले वाणपत्था तावसा भवंति, तं जहा—होत्तिया पोत्तिया जहा उववातिए जाव' कट्ठसोल्लियं पिव अप्पाणं करेमाणा विहरंति। तत्थ णं जे ते दिसापोक्खियतावसा तेसिं अंतियं मुंडे भवित्ता दिसापोक्खिततावसत्ताए पव्वइत्तए। पव्वइते वि य णं समाणे अयमेयारूवं अभिग्गहं अभिगिहिस्सामिकप्पति मे जावजीवाए छटुंछटेणं अणिक्खित्तेणं दिसाचक्कवालएणं तवोकम्मेणं उड्ढं बाहाओ पगिज्झिय पगिज्झिय जाव विहरित्तए" त्ति कटु; एवं संपेहेइ, संपेहेत्ता कल्लं जाव जलंते सुबहुं लोहीलोह जाव घडावित्ता कोडुंबियपुरिसे सद्दावेइ, को० स० २ एवं वदासी—खिप्पामेव १. भगवती, विवेचन, भा. ४ (पं. घेवरचन्दजी), पृ. १८७४ २. इसके लिए देखिए भगवतीसूत्र शतक ३, उ. १, सू. ३६ ३. देखिये औपपातिक सूत्र ३८ पत्र ९० (आगमोदय०) में पाठ—'कोत्तिया जन्नई सड्डई थालई हुंबउट्ठा दंतुक्खलिया उम्मजगा सम्मज्जगा निमज्जगा संपक्खाला दक्खिणकूलगा उत्तरकूलगा संखधमगा कूलधमगा मिगलुद्धया हत्थितावसा उइंडगा दिसापोक्खिणो वक्कवासिणो चेलवासिणो जलवासिणो रुक्खमूलिया अंबुभक्खिणो वाउभक्खिणो सेवालभक्खिणो मूलाहारा कंदाहारा तयाहारा पत्ताहारा, पुण्फाहारा फलाहारा बीयाहारा परिसडियकंद-गूल-तय पत्त-पुष्फ-फलाहारा जलाभिसेयकढिणगाया अयावणाहिं पंचग्गितावेहिं इंगालसोल्लियं कंदुसोल्लियं ति। ४. औपपातिकसूत्र के अतिदेश वाले इस पाठ का अनुवाद [ ] कोष्ठक दे कर दे दिया गया है। सं.
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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