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उपर्युक्त रूप से कहा गया है ?
४. जीवा णं भंते! किं धम्मे ठिया, अधम्मे ठिया धम्माधम्मे ठिया ?
गोयमा ! जीवा धम्मे वि ठिया, अधम्मे वि ठिया, धम्माधम्मे वि ठिया ।
[४प्र.] भगवन् ! क्या जीव धर्म में स्थित होते हैं, अधर्म में स्थित होते हैं और धर्माधर्म में स्थित होते हैं?
[४ उ.] गौतम! जीव, धर्म में भी स्थित होते हैं, अधर्म में भी स्थित होते हैं और धर्माधर्म में भी स्थित होते
हैं ।
व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
५. नेरतिया णं पुच्छा।
गोयमा ! रतिया नो धम्मे ठिया, अधम्मे ठिया, नो धम्माधम्मे ठिया ।
[५ प्र.] भगवन् ! नैरयिक जीव, क्या धर्म में स्थित होते हैं ? इत्यादि प्रश्न ।
[५ उ.] नैरयिक न तो धर्म में स्थित हैं और न धर्माधर्म में स्थित होते हैं, किन्तु वे अधर्म में स्थित हैं। ६. एवं जाव चउरिंदियाणं ।
[६] इसी प्रकार चतुरिन्द्रिय जीवों तक जानना चाहिए।
७. पंचिंदियतिरिक्खजोणिया णं० पुच्छा ।
गोमा ! पंचिंदियतिरिक्खजोणिया नो धम्मे ठिया, अधम्मे ठिया, धम्माधम्मे वि ठिया ।
[ ७ प्र.] भगवन् ! पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव क्या धर्म में स्थित हैं ?...
....... इत्यादि प्रश्न ।
[७ उ.] गौतम! पंचेन्द्रिय तिर्यग्योनिक जीव धर्म में स्थित नहीं हैं, वे अधर्म में स्थित हैं, और धर्माधर्म में भी स्थित हैं ।
८. मणुस्सा जहा जीवा ।
[८] मनुष्यों के विषय में जीवों (सामान्य जीवों) के समान जानना चाहिए ।
९. वाणमंतर - जोतिसिय-वेमाणिया जहा नेरइया ।
[९] वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिकों के विषय में नैरयिकों के समान जानना चाहिए।
विवेचन — प्रस्तुत नौ सूत्रों (सू. १ से ९ तक) में जीवों के संयत, असंयत एवं संयतासंयत होने की तथा नैरयिकों से लेकर वैमानिकों तक चौवीस दण्डकवर्ती जीवों के धर्म, अधर्म या धर्माधर्म में स्थित होने की चर्चाविचारणा की गई है।
धर्म-अधर्म आदि पर बैठना, सोना आदि - धर्म, अधर्म और धर्माधर्म, ये तीनों अमूर्त पदार्थ हैं । सोना, बैठना आदि क्रियाएँ मूर्त्त आसन आदि पर ही हो सकती हैं। इसलिए अमूर्त धर्म, अधर्म आदि पर सोना