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गोयमा ! कण्हलेस्सेहिंतो नीललेस्सा महिड्डिया जाव सव्वमहिड्डिया तेउलेस्सा।
सेवं भंते! सेवं भंते! जाव विहरति ।
व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
॥ सोलसमे सए : एगारसमो उद्देसओ समत्तो ॥ १६-११॥
[१ प्र.] भगवन्! कृष्णलेश्या से लेकर यावत् तेजोलेश्या वाले द्वीपकुमारों में कौन किसके अल्पर्द्धिक हैं अथवा महर्द्धिक हैं ?
[१ उ.] गौतम! कृष्णलेश्या वाले द्वीपकुमारों से नीललेश्या वाले द्वीपकुमार महर्द्धिक हैं, (इस प्रकार उत्तरोत्तर महर्द्धिक हैं), यावत् तेजोलेश्या वाले द्वीपकुमार सभी से महर्द्धिक हैं ।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यों कह कर ( गौतम स्वामी) यावत् विचरते
हैं ।
विवेचन — प्रस्तुत चार सूत्रों (सू. १ से ४ तक) से भवनपति देवनिकाय के अन्तर्गत द्वीपकुमार देवों के आहार, उच्छ्वास - निश्वास, आयुष्य आदि की समानता - असमानता तथा उनमें पाई जाने वाली लेश्याएँ तथा किस लेश्या वाला किससे अल्प, बहुत आदि अल्पर्द्धिक-महर्द्धिक है ? इन तथ्यों का निरूपण किया गया है। ॥ सोलहवाँ शतक : ग्यारहवाँ उद्देशक समाप्तं ॥
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