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एगारसमो उद्देसओ : 'दीव'
ग्यारहवाँ उद्देशक : द्वीपकुमार सम्बन्धी वर्णन द्वीपकुमार देवों की आहार, श्वासोच्छ्वासादि की समानता-असमानता का निरूपण
१. दीवकुमारा णं भत्ते! सव्वे समाहारा० निस्सासा ?
नो इणढे समढे। एवं जहा पढमसए बितियउद्देसए दीवकुमाराणं वत्तव्वया ( स. १ उ. २ सु. ६) तहेव जाव समाउयासमुस्सासनिस्सासा।
[१ प्र.] भगवन् ! क्या सभी द्वीपकुमार समान आहार वाले और समान उच्छ्वास-निःश्वास वाले हैं ?
[१ उ.] गौतम! यह अर्थ समर्थ (शक्य) नहीं है। प्रथम शतक के द्वितीय उद्देशक (सू. ६) में जिस प्रकार द्वीपकुमारों की वक्तव्यता कही है, उसी प्रकार की वक्तव्यता यहाँ भी, कितने ही सम-आयुष्य वाले और सम-उच्छ्वास-नि:श्वास वाले होते हैं, तक कहनी चाहिए। द्वीपकुमारों में लेश्या की तथा लेश्या एवं ऋद्धि के अल्पबहुत्व की प्ररूपणा
२. दीवकुमाराणं भंते ! कति लेस्साओ पन्नत्ताओ? गोयमा ! चत्तारि लेस्साओ पन्नत्ताओ, तं जहा—कण्हलेस्सा जाव तेउलेस्सा। [ २ प्र.] भगवन् ! द्वीपकुमारों में कितनी लेश्याएँ कही हैं ? [२ उ.] गौतम! उनमें चार लेश्याएँ कही हैं, यथा—कृष्णलेश्या, यावत् तेजोलेश्या।
३. एएसि णं भंते ! दीवकुमाराणं कण्हलेस्साणं जाव तेउलेस्साण य कयरे कयरेहितो जाव विसेसाहिया वा!
गोयमा ! सव्वत्थोवा दीवकुमारा तेउलेस्सा, काउलेस्सा असंखेज्जगुणा, नीललेस्सा विसेसाहिया, कण्हलेस्सा विसेसाहिया।
[३ प्र.] भगवन् ! कृष्णलेश्या से लेकर तेजोलेश्या वाले द्वीपकुमारों में कौन किससे यावत् विशेषाधिक हैं? __ [३ उ.] गौतम! सबसे कम द्वीपकुमार तेजोलेश्या वाले हैं। कापोतलेश्या वाले उनसे असंख्यातगुणे हैं। उनसे नीललेश्या वाले विशेषाधिक हैं और उनसे कृष्णलेश्या वाले विशेषाधिक हैं।
४. एतेसिणं भंते ! दीवकुमाराणं कण्हलेस्साणं जाव तेउलेस्साण य कयरे कयरहितो अप्पिड्डिया या महिड्डया वा?