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________________ ५८४ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र चौथे स्वप्न में भगवान् महावीर, जो एक सर्वरत्नमय महान् मालायुगल को देखकर जागृत हुए, उसका फल यह है कि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने दो प्रकार का धर्म बतलाया। यथा—आगार-धर्म और अनगार-धर्म॥४॥ पाँचवें स्वप्न में श्रमण भगवान् महावीर एक श्वेत महान् गोवर्ग देखकर जागृत हुए, उसका फल यह है कि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी के चातुर्वर्ण्य-युक्त (चार प्रकार का) श्रमण संघ हुआ, यथा-श्रमण, श्रमणी, श्रावक और श्राविका ॥ ५॥ ___ छठे स्वप्न में श्रमण भगवान् महावीर एक कुसुमित पद्मसरोवर को देखकर जागृत हुए, उसका फल यह है कि श्रमण भगवान् महावीर ने चार प्रकार के देवों की प्ररूपणा की, यथा— भवनवासी, वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क और वैमानिक॥६॥ सातवें स्वप्न में श्रमण भगवान् महावीर हजारों तरंगों और कल्लोलों से व्याप्त एक महासागर को अपनी भुजाओं से तिरा हुआ देखकर जागृत हुए, उसका फल यह है कि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी अनादि-अनन्त यावत् संसार-कान्तार को पार कर गए ॥७॥ ___ आठवें स्वप्न में श्रमण भगवान् महावीर, तेज से जाज्वल्यमान एक महान् दिवाकर को देखकर जागृत हुए, उसका फल यह है कि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को अनन्त, अनुत्तर, निरावरण, निर्व्याघात, समग्र और प्रतिपूर्ण श्रेष्ठ केवलज्ञान-केवलदर्शन उत्पन्न हुआ॥८॥ नौवें स्वप्न में भगवान् महावीर स्वामी ने एक महान् मानुषोत्तर पर्वत को नील वैडूर्यमणि के समान अपनी आंतों से चारों और आवेष्टित-परिवेष्टित किया हुआ देखा, उसका फल यह है कि देवलोक, असुरलोक और मनुष्यलोक में, श्रमण भगवान् महावीर स्वामी केवलज्ञान-दर्शन के धारक हैं, श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ही केवलज्ञान-केवलदर्शन के धारक हैं, इस प्रकार श्रमण भगवान् महावीर स्वामी उदार कीर्ति, वर्ण (स्तुति), शब्द (सम्मान या प्रशंसा) और श्लोक (यश) को प्राप्त हुए ॥९॥ दसवें स्वप्न में श्रमण भगवान् महावीर स्वामी एक महान् मेरुपर्वत की मन्दर-चूलिका पर अपने आपको सिंहासन पर बैठे हुए देखकर जागृत हुए उसका फल यह है कि श्रमण भगवान् महावीर स्वामी ने केवलज्ञानी होकर देवों, मनुष्यों और असुरों की परिषद् के मध्य में धर्मोपदेश दिया यावत् (धर्म) उपदर्शित किया। विवेचन—प्रस्तुत दो सूत्रों (२०-२१) में शास्त्रकार ने भगवान् महावीर द्वारा छद्मस्थ अवस्था की अन्तिम रात्रि में देखे गए दस स्वप्नों तथा उन दसों के क्रमशः फल का वर्णन किया है। ___ छउमत्थकालियाए अंतिमराइयंसि—दो अर्थ—इस पाठ के दो अर्थ मिलते हैं—(१) छद्मस्थावस्था की अंतिम रात्रि में अर्थात्—जिस रात्रि में ये स्वप्न देखे थे, उसके पश्चात् उसी रात्रि में भगवान् छद्मस्थावस्था से निवृत्त होकर केवलज्ञानी हो गए थे। (२) छद्मस्थावस्था की रात्रि के अंतिम भाग (पिछले प्रहर) में । यहाँ किसी रात्रिविशेष का निर्देश नहीं किया गया है, किन्तु महापुरुषों द्वारा देखे हुए शुभस्वप्नों का फल तत्काल ही मिला करता है। अतः इन दोनों अर्थों में से पहला अर्थ ही उचित एवं संगत प्रतीत होता है।' १. (क) 'रात्रेन्तिम भागे-भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ७११ (ख) भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. ५, पृ. २५६१
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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