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________________ ५८२ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र ४. बलदेव की माता को ४ ५. माण्डलिक की माता को १ कठिन शब्दार्थ—पासित्ताणं-देखकर । पडिबुझंति—जागृत होती हैं । महासुविणाणं—महास्वप्नों में से। अन्नयर—किन्हीं। विशेष-जब तीर्थंकर अथवा चक्रवर्ती का जीव नरक से निकल कर आता है तो उनकी माता भवन' देखती है और जब देवलोक से च्यव कर आता है तो विमान देखती है। भगवान महावीर को छद्मस्थावस्था की अन्तिम रात्रि में दिखाई दिये १० स्वप्न और उनका फल २०. समणे भगवं महावीरे छउमत्थकालियाए अंतिमराइयंसि इमे दस महासुविणे पासित्ताणं पडिबुद्धे, तं जहा—एगं च णं महं घोररूवदित्तधरं तालपिसायं सुविणे पराजियं पासित्ताणं पडिबुद्धे। एगं च णं महं सुक्किलपक्खगं पुंसकोइलं सुवणे पासित्ताणं पडिबुद्धे २ एगंचणं महं चित्तविचित्तपक्खगं पुंसकोइलगं सुविणे पासित्ताणं पडिबुद्धे ३। एगं च णं महं दामदुगं सव्वरयाणामयं सुविणे पासित्ताणं पडिबुद्धे ४। एगं च णं महं सेयं गोवग्गं सुविणे पासित्ताणं पडिबुद्धे५ । एगं च णं महं पउमसरं सव्वतो समंता कुसुमियं सुविणे पासित्ताणं पडिबुद्धे ६। एगं च णं महं सागरं उम्मीवीयीसहस्सकालियं भुयाहिं तिण्णं सुविणे पासित्ताणं पडिबुद्धे ७। एगं च णं महं दिणकरं तेयसा जलंतं सुविणे पासित्ताणं पडिबुद्धे ८। एगं च णं महं हरिवेरुलियवण्णाभेणं नियोगेणं अंतेणं माणुसुत्तरं पव्वयं सव्वतो समंता आवेढियं परिवेढियं सुविणे पासित्ताणं पडिबुद्धे ९। एगं च णं महं मंदरे पव्वए मंदरचूलियाए उवरिं सीहासणवरगयं अप्पाणं सुविणे पासित्ताणं पडिबुद्धे १०। [२०.] श्रमण भगवान् महावीर अपने छद्मस्थ काल की अन्तिम रात्रि में इन दस महास्वप्नों को देखकर जागृत हुए। वे इस प्रकार हैं-(१) एक महान् घोर (भयंकर) और तेजस्वी रूप वाले ताड़वृक्ष के समान लम्बे पिशाच को स्वप्न में पराजित किया, ऐसा स्वप्न देखकर जागृत हुए। (२) श्वेत पांखों वाले एक महान् पुंस्कोकिल (नरजाति के कोयल) को स्वप्न में देखकर जागृत हुए। (३) चित्र-विचित्र पंखों वाले पुंस्कोकिल को स्वप्न में देखकर जागृत हुए। (४) स्वप्न में सर्वरत्नमय एक महान् मालायुगल को देखकर जागृत हुए। (५) स्वप्न में श्वेतवर्ण के एक महान् गोवर्ग को देखकर प्रतिबुद्ध हुए। (६) चारों ओर से पुष्पित एक महान् पद्मसरोवर को स्वप्न में देखकर जागृत हुए। (७) सहस्रों तरंगों (लहरों) और कल्लोलों से कलित (सुशोभित) एक महासागर को अपनी भुजाओं से तिरे, ऐसा स्वप्न देखकर जागृत हुए। (८) अपने तेज से जाज्वल्यमान एक महान् दिवाकर (सूर्य) को स्वप्न में देखकर जागृत हुए। (९) एक महान् (विशाल) मानुषोत्तर पर्वत को नील वैडूर्य मणि के समान अपने अन्तर भाग (आंतों) में चारों ओर से आवेष्टित-परिवेष्टित देखकर जागृत हुए। १. भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. ५, पृ. २५५८ २. वही, भा. ५, पृ. २५५९
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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