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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
[१३ प्र.] भगवन्! महास्वप्न कितने प्रकार के कहे गए हैं ? [१३ उ.] गौतम!.महास्वप्न तीस प्रकार के कहे गए हैं। १४. कति णं भंते! सव्वसुविणा पन्नत्ता ? गोयमा! बावत्तरि सव्वसुविणा पन्नत्ता। [१४ प्र.] भगवन् ! सभी स्वप्न कितने प्रकार के कहे गए हैं ? [१४ उ.] गौतम ! सभी स्वप्न बहत्तर प्रकार के कहे गए हैं।
विवेचन—विशिष्ट फलसूचक स्वप्नों की संख्या—वैसे तो स्वप्न असंख्य प्रकार के हो सकते हैं, किन्तु विशिष्ट फलसूचक स्वप्नों की अपेक्षा ४२ हैं, तथा महत्तम फलसूचक होने से ३० महास्वप्न बतलाए गए हैं। कुल मिलकार दोनों प्रकार के स्वप्नों की संख्या ७२ बतलाई गई है। तीर्थंकरादि महापुरुषों की माताओं को गर्भ में तीर्थंकरादि के आने पर दिखाई देने वाले महास्वजों की संख्या का निरूपण
१५. तित्थयरमायरो णं भंते! तित्थगरंसि गब्भं वक्कममाणंसि कति महासुविणे पासित्ताणं पडिबुझंति?
गोयमा ! तित्थगरमायरो णं तित्थगरंसि गन्भं वक्कममाणंसि एएसिं तीसाए महासुविणाणं इमे चोद्दस महासुविणे पासित्ताणं पडिबुझंति, तं जहा—गय-वसभ-सीह जाव सिहिं च।
[१५ प्र.] भगवन् ! तीर्थकर का जीव जब गर्भ में आता है, तब तीर्थंकर की माताएँ कितने महास्वप्न देखकर जागृत होती हैं ?
[१५ उ.] गौतम ! जब तीर्थंकर का जीव गर्भ में आता है, तब तीर्थंकर की माताएँ इन तीस महास्वप्नों में से चौदह महास्वप्न देखकर जागृत होती हैं, यथा—गज, वृषभ, सिंह यावत् अग्नि।
१६. चक्कवट्टिमायरो णं भंते ! चक्कवट्टिसि गब्भं वक्कममाणंसि कति महासुविणे जाव बुझंति?
गोयमा ! चक्कवट्टिमायरो चक्कवट्टिसि गम्भं वक्कममाणंसि एएसिं तीसाए महासु० एवं जहा तित्थगरमायरो जाव सिहिं च।
[१६ प्र.] भगवन् ! जब चक्रवर्ती का जीव गर्भ में आता है, तब चक्रवर्ती की माताएँ कितने महास्वप्नों को देखकर जागृत होती हैं ?
[१६ उ.] गौतम! चक्रवर्ती का जीव गर्भ में आता है, तब चक्रवर्ती की माताएँ इन (पूर्वोक्त) तीस महास्वप्नों में से तीर्थंकर की माताओं के समान चौदह महास्वप्नों को देखकर जागृत होती हैं, यथा—गज,यावत् अग्नि।
१. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ७११