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________________ ५७९ सोलहवां शतक : उद्देशक-६ [१० उ.] गौतम! जीव संवृत भी हैं, असंवृत भी हैं और संवृतासंवत भी हैं। ११. एवं जहेव सुत्ताणं दंडओ तहेव भाणियव्वो। [११] जिस प्रकार सुप्त, (जागृत और सुप्त-जागृत) जीवों का दंडक (आलापक) कहा, उसी प्रकार इनका भी कहना चाहिए। विवेचन संवृत, असंवृत और संवृतासंवृत का स्वरूप और जागृत आदि में अन्तर--जिसने आश्रवद्वारों का निरोध कर दिया है, वह सर्वविरत श्रमण संवृत कहलाता है। जिसने आश्रवद्वारों का निरोध नहीं किया है, वह असंवृत है और जिसने आंशिक रूप से आश्रवद्वारों का निरोध किया है, आंशिक रूप से आश्रवद्वारों का निरोध नहीं किया है, वह संवृतासंवृत है। संवृत और जागृत में केवल शाब्दिक अन्तर है, अर्थ की अपेक्षा से नहीं। दोनों सर्वविरत कहलाते हैं। बोध की अपेक्षा से सर्वविरतियुक्त मुनि जागृत कहलाता है, जब कि तथाविधबोध से युक्त मुनि सर्वविरति की अपेक्षा से संवृत कहलाता है। इसी प्रकार असंवृत और अविरत तथा संवृतासंवृत और विरताविरत में भी अर्थ की दृष्टि से कोई अन्तर नहीं है। संवृत शब्द से यहाँ विशिष्टतर संवृतत्वयुक्त मुनि का ग्रहण किया गया है। वह प्रायः कर्मफल के क्षीण होने से तथा देवानुग्रह से युक्त होने से यथार्थ (सत्य) स्वप्न ही देखता है। दूसरे असंवृत और संवृतासंवृत जीव तो यथार्थ और अयथार्थ दोनों प्रकार के स्वप्न देखते हैं। कठिन शब्दार्थ-संवुडे—संवृत मुनि। संवुडासंवुडे-संवृतासंवृत—विरताविरत श्रावक।' संवृत आदि की जागृत आदि से तुलना—भावसुप्त की तरह असंवृत भी भावत: सुप्त होता है, संवृत भावतः जागृत होता है। और संवृतासंवृत भावत: सुप्तजागृत होता है। स्वप्नों और महास्वप्नों की संख्या का निरूपण १२. कति णं भंते! सुविणा पन्नत्ता ? गोयमा ! बायालीसं सुविणा पन्नत्ता। [१२ प्र.] भगवन् ! स्वप्न कितने प्रकार के होते हैं ? [१२ उ.] गौतम! स्वप्न बयालीस प्रकार के कहे गये हैं। १३. कति णं भंते महासुविणा पन्नत्ता? गोयमा ! तीसं महासुविणा पन्नत्ता। १. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ७११ (ख) भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. ५, पृ. २५५६ २. वही, पृ. २५५६ ३. वियाहपण्णत्तिसुत्तं भा. २ (मूलपाठ-टिप्पण) पृ. ७६१-७६२
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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