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________________ पंचमो उद्देसओ : पंचम उद्देशक नालीय : नालिक (नाडीक - जीवसम्बन्धी ) १. नालिए णं भंते ! एगपत्तए किं एगजीवे, अणेगजीवे ? एवं कुंभिउद्देगवत्तव्वया निरवसेसा भाणियव्वा । सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति० । ॥ एक्कारसमे सए पंचमो उद्देसो समत्तो ॥ ११.५॥ [१ प्र.] भगवन् ! एक पत्ते वाला नालिक (नाडीक), एक जीव वाला है या अनेक जीव वाला ? [१ उ.] गौतम ! जिस प्रकार कुम्भिक उद्देशक में कहा है, वही सारी वक्तव्यता यहाँ कहनी चाहिए। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरने लगे । विवेचन नालिक: नाडीक वनस्पति का स्वरूप— जिसके फल नाडी या नाली की तरह होते हैं, ऐसा वनस्पतिविशेष नाडीक या नालिक होता है । ॥ ग्यारहवाँ शतक : पंचम उद्देशक समाप्त ॥ १. भगवती अ. वृत्ति वृत्ति, पत्र ५११ - नाडीवद्यस्य फलानी स नाडीको वनस्पतिविशेषः ।
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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