SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चउत्थो उद्देसओ : चतुर्थ उद्देशक कुंभी : कुम्भिक ( के जीवसम्बन्धी) १. कुंभिए णं भंते ! एगपत्तए किं एगजीवे, अणेगजीवे ? एवं जहा पलासुद्देसए तहा भाणियव्वे, नवरं ठिती जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं वासपुहत्तं। सेसं तं चेव। सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति०। ॥एक्कारसमे सए चउत्थो उद्देसो समत्तो ॥११.४॥ __ [१ प्र.] भगवन् ! एक पत्ते वाला कुम्भिक (वनस्पतिविशेष) एक जीव वाला होता है या अनेक जीव वाला? [१ उ.] गौतम ! जिस प्रकार पलाश (जीव) के विषय में तीसरे उद्देशक में कहा है, उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिए। इतना विशेष है कि कुम्भिक की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त की और उत्कृष्ट वर्ष-पृथकत्व (दो वर्ष से नौ वर्ष तक) की है। शेष सभी वर्णन पूर्ववत् जानना चाहिए। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है! भगवन् ! यह इसी प्रकार है, ' ऐसा कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरण करते हैं। विवेचन-तृतीय उद्देशक के अतिदेशपूर्वक कुम्भिकवर्णन—प्रस्तुत सूत्र में केवल स्थिति को छोड़कर शेष कुम्भिक का सभी वर्णन पलाशजीव के समान बताया गया है। ॥ ग्यारहवाँ शतक : चतुर्थ उद्देशक समाप्त ॥ ०००
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy