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सोलहवाँ शतक : उद्देशक - ५
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विवेचन— गंगदत्त को प्राप्त दिव्य देवर्द्धि भगवान् ने गौतम स्वामी के पूछने पर गंगदत्त की दिव्य देवर्द्धि आदि का कारण पूर्वभव में हस्तिनापुर नगर के सम्पन्न और अपराभूत गंगदत्त नामक गृहस्थ द्वारा भगवान् मुनिसुव्रतस्वामी का धर्मोपदेश सुनकर संसार से विरक्त होकर मुनिसुव्रतस्वामी के पास श्रमण धर्म में प्रव्रजित होकर सम्यग्ज्ञान - दर्शन - चारित्र की सम्यक् आराधना करना कहा है। साथ ही अन्तिम समय में एक मास का संलेखना-संथारा ग्रहण करके समाधिपूर्वक मरण प्राप्त करना भी कहा है । इन्हीं कारणों से उसे महाशुक्र देवलोक में इतनी दिव्य देव - ऋद्धि-द्युति आदि प्राप्त हुई । "
कठिन शब्दार्थ — पकड्ढिज्जमाणेणं-खींचे जाते हुए । कुटुंबे ठावेमि — कौटुम्बिक कार्यभार में स्थापित करूँगा, कुटुम्ब का दायित्व सौंपूगा । उवक्खडावे – पकवाया, तैयार करवाया । २
पांच पर्याप्तियों से पर्याप्त—इसलिए कहा गया है कि देवों में भाषापर्याप्ति और मनः पर्याप्ति सम्मिलित बंधी है।
गंगदत्त देव की स्थिति तथा भविष्य में मोक्षप्राप्ति का निरूपण
१७. गंगदत्तस्स णं भंते! देवस्स केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता ? गोयमा ! सत्तरससागरोवमाइं ठिती पन्नत्ता ।
[१७ प्र.] भगवन्! गंगदत्त देव की कितने काल की स्थिति कही गई है ? [१७ उ.] गौतम ! उसकी सत्तरह सागरोपम की स्थिति कही है।
१८. गंगदत्ते णं भंते! देवे ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं जाव。 ? महाविदेहे वासे सिज्झिहिति जाव अंतं काहिति ।
सेवं भंते! सेवं भंते! ति० ।
॥ सोलसमे सए : पंचमो उद्देसओ समत्तो ॥ १६-५॥
[ १८ प्र.] भगवन् ! गंगदत्त देव उस देवलोक से आयुष्य का क्षय, भव और स्थिति का क्षय होने पर च्यव कर कहाँ जाएगा, कहाँ उत्पन्न होगा ?
[१८ उ.] गौतम ! वह महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध होगा, यावत् सर्वदुःखों का अन्त करेगा । हे भगवन्! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यों कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। ॥ सोलहवां शतक : पंचम उद्देशक समाप्त ॥
१. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण), भा. २, पृ. ७४८-७६०
२. भगवती ( हिन्दीविवेचन ) भा. ५, पृ. २५४७ - २५४९