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________________ सोलहवां शतक : उद्देशक-५ ५७३ "तए णं से गंगदत्ते गाहावती मुणिसुव्वयस्स अरहओ अंतियं धम्मं सोच्चा निसम्म हट्ठतुट्ठ० उट्ठाए उठेति, उ० २ मुणिसुव्वतं अरहं वंदति नमंसति, वं० २ एवं वदासी—'सद्दहामि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं जाव से जहेयं तुब्भे वदह। जं नवरं देवाणुप्पिया! जेटुपुत्तं कुडुंबे ठावेमि, तए णं अहं देवाणुप्पियाणं अंतियं मुंडे जाव पव्वयामि।" 'अहासुहं देवाणुप्पिया। मा पडिबंधं।' __ "तए णं से गंगदत्ते गाहावती मुणिसुव्वतेणं अरहया एवं वुत्ते समाणे हट्टतुट्ठ० मुणिसुव्वं अरहं वंदति नमंसति, वं० २ मुणिसुव्वयस्स अरहओ अंतियाओ सहसंबवणाओ उज्जाणातो पडिनिक्खमति, पडि० २ जेणेव हत्थिणापुरे नगरे जेणेव सए गिहे तेणेव उवागच्छति, उवा० २ विपुलं असण-पाण० जाव उवक्खडावेइ, उव० २ मित्त-णाति-णियग० जाव आमंति, आ० २ ततो पच्छा प्रहाते जहा पूरणे ( स. ३ उ. २ सु. १९) जाव जेट्टपुत्तं कुटुंबे ठावेति, ठा० २ तं मित्त-णाति० जाव जेट्टपुत्तं च आपुच्छति, आ.२ पुरिससहस्सवाहिणिं सीयं दुरूहति, पुरिससह. २ मित्त-णाति-नियग० जाव परिजणेणं जेट्टपुत्तेण य समणुगम्ममाणमग्गे सव्विड्डीए जाव णादितरवेणं हथिणापुर नगरं मझमज्झेणं निग्गच्छति, नि० २ जेणेव सहसंबवणे उज्जाणे तेणेव उवागच्छति, उवा० २ छत्तादिए तित्थगरातिसए पासति, एवं जहा उद्दायणो (स. १३ उ. ६ सु. ३०) जाव सयमेव आभरणं ओमुयइ, स० २ सयमेव पंचमुट्ठियं लोयं करेइ, स० २ जेणेव मुणिसुव्वये अरहा, एवं जहेव उद्दायणो ( स. १३ उ. ६ सु. ३१) तहेव पव्वइओ। तहेव एक्कारस अंगाइं अधिज्जइ जाव मासियाए संलेहणाए सर्द्धिभत्ताइं अणसणाए जाव छेदेति, सटुिं. २ आलोइयपडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे कालं किच्चा महासुक्के कप्पे महासामाणे विमाणे उववायसभाए देवसएणिज्जंसि जाव गंगदत्तदेवत्ताए उववन्ने।" तए णं ते गंगदत्ते देव अहुणोववन्नमेत्तए समाणे पंचविहाए पज्जत्तीए पज्जत्तीभावं गच्छति, तं जहा—आहारपज्जत्तीए जाव भासा-मणपज्जत्तीए।" "एवं खलु गोयमा ! गंगदत्तेणं देवेणं सा दिव्वा देविड्डी जाव अभिसमन्नागया।" [१६ प्र.] भगवन् ! गंगदत्त देव की वह दिव्य देवाद्धि, दिव्य देवधुति कैसे उपलब्ध हुई ? यावत् जिससे गंगदत्त देव ने वह दिव्य देव-ऋद्धि उपलब्ध, प्राप्त और यावत् अभिसमन्वागत (सम्मुख) की ? [१६ उ.] 'हे गौतम! ' इस प्रकार सम्बोधन करके श्रमण भगवान् महावीर ने भगवान् गौतम से इस प्रकार कहा—गौतम ! बात ऐसी है कि उस काल उस समय में इसी जम्बूद्वीप नामक द्वीप में, भारतवर्ष में हस्तिनापुर नाम का नगर था। उसका वर्णन पूर्ववत् । वहाँ सहस्रांम्रवन नामक उद्यान था। उसका वर्णन भी पूर्ववत् समझना। उस हस्तिनापुर नगर में गंगदत्त नाम का गाथापति रहता था। वह आढ्य यावत् अपराभूत (अपराजेय) था। उस काल उस समय में धर्म (तीर्थ) की आदि (प्रवर्तन) करने वाले यावत् सर्वज्ञ सर्वदर्शी आकाशगत (धर्म) चक्रसहित यावत् देवों द्वारा खींचे जाते हुए धर्मध्वजयुक्त, शिष्यगण से संपरिवृत्त हो कर अनुक्रम से विचरते हुए और ग्रामानुग्राम जाते हुए, यावत् मुनिसुव्रत अर्हन्त यावत सहस्राम्रवन उद्यान में पधारे, यावत् यथायोग्य अवग्रह ग्रहण करके विचरने लगे। परिषद् वन्दना करने के लिए आई यावत् पर्युपासना करने लगी। जब गंगदत्त गाथापति ने भगवान् श्री मुनिसुव्रतस्वामी के पदार्पण की बात सुनी तो वह अतीव हर्षित और
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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