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________________ ५७२ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र कठिन शब्दार्थ—जावं—जब तक या जिस समय। तावं-तभी। हव्वमागए—शीघ्र आ पहुँचा। गंगदत्तदेव की दिव्य ऋद्धि आदि के सम्बन्ध में प्रश्न : भगवान् द्वारा पूर्वभव-वृत्तान्तपूर्वक विस्तृत समाधान १५. 'भंते !' त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं जाव एवं वदासी—गंगदत्तस्स णं भंते! देवस्स सा दिव्वा देविड्डी दिव्वा देवजुती जाव अणुष्पविट्ठा ? गोयमा ! सरीरं गया, सरीरं अणुप्पविट्ठा। कूडागारसालादिद्रुतो जाव सरीरं अणुप्पविट्ठा। अहो! णं भंते! गंगदत्ते देवे महिड्डीए जाव महेसक्खे। [१५ प्र.] 'भगवन् !' इस प्रकार सम्बोधन करके भगवान् गौतम ने श्रमण भगवान् महावीर से यावत् इस प्रकार पूछा-'भगवन् ! गंगदत्त देव की वह दिव्य देवर्द्धि, दिव्य देवद्युति यावत् कहाँ गई, कहाँ प्रविष्ट हो गई?' [१५ उ.] गौतम! (गंगदत्त देव की वह दिव्य देवर्द्धि इत्यादि) यावत् उस गंगदत्त देव के शरीर में गई और शरीर में ही अनुप्रविष्ट हो गई । यहाँ कूटाकारशाला का दृष्टान्त, यावत् वह शरीर में अनुप्रविष्ट हुई, (यहाँ तक समझना चाहिए।) (गौतम) अहो! भगवन् ! गंगदत्त देव महर्द्धिक यावत् महासुखसम्पन्न है। १६. गंगदत्तेणं भंते! देवेणं सा दिव्वा देविड्डी दिव्वा देवजुती किण्णा लद्धा जाव जंणं गंगदत्तेणं देवेणं सा दिव्वा देविड्डी जाव अभिसमन्नागया ? 'गोयमा!' ई समणे भगवं महावीरे भगवं गोयम एवं वयासी—'एवं खलु गोयमा।' "तेणं कालेणं तेणं समयेणं इहेव जंबुद्दीवे दीवे भारहे वाले हत्थिणापुरे णाम नगरे होत्था, वण्णओ। सहसंबवणे उज्जाणे, वण्णओ। तत्थ णं हथिणापुरे नगरे गंगदत्ते नाम गाहावती परिवसति अड्ढे जाव अपरिभूते।" "तेणं कालेणं तेणं समयेणं मुणिसुव्वए अरहा आदिगरे जाव सव्वण्णू सव्वदरिसी आगासगएणं चक्केणं जाव पकड्ढिज्जमाणेणं पकड्डिजमाणेणं सीसगणसंपरिवुडे पुव्वाणुपुब्बिं चरमाणे गामाणुगामं जाव जेणेव सहसंबवणे उज्जाणे जाव विहरति। परिसा निग्गता जाव पज्जुवासति।" तए णं से गंगदत्ते गाहावती इमीसे कहाए लद्धढे समाणे हट्ठतुटे. पहाते कतबलिकम्मे जाव सरीरे सातो गिहातो पडिनिक्खमति, २ पादविहारचारेणं हत्थिणापुर नगरं मझमझेण निग्गच्छति, नि० २ जेणेव सहसंबवणे उजाणे जेणेव मुणिसुब्बए अरहा तेणेव उवागच्छइ, उवा० २ मुणिसुव्वयं अरहं तिक्खुतो आयाहिणपयाहिणं जाव तिविहाए पज्जुवासणाए पज्जुवासति। "तए णं से मुणिसुव्वए अरहा गंगदत्तस्स गाहावतिस्स तीसे य महति जाव परिसा पडिगता।" १. भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. ५, पृ. २५४५
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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