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________________ ५६० व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र ७. तस्स णं उल्लुयतीरस्स नगरस्स बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसिभाए, एत्थ णं एगजंबुए नामं चेतिए होत्था। वण्णओ। __(७) उस उल्लूकतीर नगर के बाहर उत्तर-पूर्व दिशाभाग (ईशानकोण) में 'एकजम्बूक' नामक उद्यान था। उसका वर्णन पूर्ववत्। ८. तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नदा कदायि पुव्वाणुपुचि चरमाणे जाय एगजंबुए समोसढे। जाव परिसा पडिगया। (८) एक वार किसी दिन श्रमण भगवान् महावीर स्वामी अनुक्रम से विचरण करते हुए यावत् 'एकजम्बूक' उद्यान में पधारे। यावत् परिषद (धर्मदेशना श्रवण कर) लौट गई। ९. 'भंते !' त्ति भगवं गोयमे समणं भगवं महावीरं वंदति नमंसति, २ एवं वदासि (९) 'भगवन् !' यों सम्बोधन करके भगवान् गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी को वन्दननमस्कार किया और फिर इस प्रकार पूछा १०. अणगारस्स णं भंते! भावियप्पणो छठें छट्टेणं अणिक्खित्तेणं जाव आतावेमाणस्स तस्स णं पुरस्थिमेणं अवड्ढे दिवसं नो कप्पति हत्थं वा पायं या बाहं वा ऊरुं वा आउंटावेत्ताए वा घसारेत्तए वा, पच्चत्थिमेणं से अड्ढ दिवसं कप्पति हत्थं वा पायं वा जाव ऊरुं वा आउंटावेत्तए वा असारेत्तए वा। तस्स य अंसियाओ लंबंति, तं च वेज्जे अदक्ख, ईसिं पाडेति, ई० २ अंसियाओ छिंदेजा। से नूणं भंते। जे छिंदति तस्स किरिया कज्जति ? जस्स छिंजंति नो तस्स किरिया कज्जइ णऽनत्थेगेणं धम्मंतराइएणं? हंता, गोयमा ! जे छिंदति जाव धम्मंतराइएणं। सेवं भंते ! सेवं भंते! त्ति। ॥सोलसमे सए : तइओ उद्देसओ समत्तो॥१६-३॥ [१० प्र.] भगवान् ! निरन्तर छठ-छठ (बेले-बेले) के तपश्चरण के साथ यावत् आताफ्ना लेते हुए भावितात्मा अनगार को (कायोत्सर्ग में) दिवस के पूर्वार्द्ध में अपने हाथ, पैर, बांह या ऊरु (जंघा) को सिकोड़ना या पसारना कल्पनीय नहीं है, किन्तु दिवस के पश्चिमार्द्ध (पिछले आधे भाग) में अपने हाथ, पैर या यावत् उरु को सिकोड़ना का फैलाना कल्पनीय है। इस प्रकार कायोत्सर्गस्थित उस भावितात्मा अनगार की नासिका में अर्श (मस्सा) लटक रहा हो। उस अर्श को किसी वैद्य ने देखा और यदि वह वैद्य उस अर्श को काटने के लिए उस ऋषि को भूमि पर लिटाए, फिर उसके अर्श को काटे, तो हे भगवन् ! क्या जो वैद्य अर्श काटता है, उसे क्रिया लगती है? तथा जिस (अनगार) का अर्श काटा जा रहा है, उसके मात्र धर्मान्तरायिक क्रिया के सिवाय दूसरी क्रिया तो नहीं लगती? [१० उ.] हाँ गौतम ! जो (अर्श को) कौटता है, उसे (शुभ) क्रिया लगती है और जिसका अर्श काटा
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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