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________________ तइओ उद्देसओ: कम्मे तृतीय उद्देशक : कर्म अष्ट कर्मप्रकृतियों के वेदावेद आदि का प्रज्ञापना के अतिदेशपूर्वक निरूपण १. रायगिहे जाव एवं वदासि— [१] राजगृह नगर में (गौतमस्वामी ने) यावत् इस प्रकार पूछा२. कति णं भंते ! कम्मपगडीओ पन्नत्ताओ ? गोयमा ! अट्ठ कम्पपगडीओ, तं जहा—नाणावरणिज्जं जाव अंतराइयं। [२ प्र.] भगवन् ! कर्मप्रकृतियाँ कितनी हैं ? [२ उ.] गौतम ! कर्मप्रकृतियाँ आठ हैं, यथा—ज्ञानावरणीय यावत् अन्तराय। ३. एवं जाव वेमाणियाणं? [३] इस प्रकार यावत् वैमानिकों तक कहना चाहिए। ४. जीवे णं भंते। नाणावरणिज्जं कम्मं वेदेमाणे कति कम्मपगडीओ वेदेति ? गोयमा ! अट्ठ कम्मप्पगडीओ, एवं जहा पन्नवणाए वेदावेउद्देसओ सो चेव निरवसेसो भाणियव्वो। वेदाबंधो वि तहेव। बंधावेदो वि तहेव। बंधाबंधो वि तहेव भाणियव्वो जाव वेमाणियाणं ति। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति जाव विहरित। [४ प्र.] भगवन् ! ज्ञानावरणीयकर्म को वेदता हुआ जीव कितनी कर्मप्रकृतियों का वेदन करता है? [४ उ.] गौतम ! (ज्ञानावरणीयकर्म को वेदन करता हुआ जीव) आठ कर्मप्रकृतियों को वेदता है। यहाँ प्रज्ञापनासूत्र के (२७ वें) 'वेद-वेद' नामक पद (उद्देशक) में कथित समग्र कथन करना चाहिए। वेद-बन्ध, बन्ध-वेद और बन्ध-बन्ध उद्देशक भी, (प्रज्ञापनासूत्र में उक्त कथन के अनुसार) यावत् वैमानिकों तक कहना चाहिए। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यों कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। विवेचन—प्रस्तुत चार सूत्रों (सू. १से ४ तक) में आठ कर्मप्रकृतियों के नाम गिना कर प्रज्ञापनासूत्र के वेद-वेद , वेद-बन्ध, बंध-वेद एवं बंध-बंध पद के अतिदेशपूर्वक निरूपण किया गया है। वेद-वेद-एक कर्मप्रकृति के वेदन के समय दूसरी कितनी कर्मप्रकृतियों का वेदन होता है, यह जिस उद्देशक (पद) में बताया गया है, वह प्रज्ञापना का २७ वाँ पद वेद-वेद उद्देशक है। वेद-बन्ध—एक कर्मप्रकृति के वेदन के समय अन्य कितनी कर्मप्रकृतियों का बन्ध होता है, यह जिस
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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