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- व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
[१२] गौतम ! वह सम्यग्वादी है, मिथ्यावादी नहीं है।
१४. सक्के णं भंते! देविंदे देवराया किं सच्चं भासं भासति, मोसं भासं भासति, सच्चामोसं भासं भासति, असच्चामीसं भासं भासइ ?
गोयमा ! सच्चं पि भासं भासति, जाव असच्चामोसं पि भासं भासति।
[ १४ प्र ]-भगवन् । देवेन्द्र देवराज शक्र क्या सत्य भाषा बोलता है, मृषा भाषा बोलता है, सत्यामृषा भाषा बोलता है, अथवा असत्यामृषा भाषा बोलता है?
[१४ उं.] गौतम ! वह सत्य भाषा भी बोलता है, यावत् असत्यामृषा भाषा भी बोलता है।
१५ [ १ ] सक्के णं भंते! देविंदे देवराया किं सावज्जं भासं भासति, अणवज्जं भासं भासति ? गोयमा ! सावज्जं पि भासं भासति, अणवज्जं पि भासं भासति ।
[१५-१ प्र.] भगवन्! देवेन्द्र देवराज शक्र क्या सावद्य (पापयुक्त) भाषा बोलता है या निरवद्य भाषा बोलता है?
[१५ - १ उ.] गौतम । वह सावद्य भाषा भी बोलता है और निरवद्य भाषा भी बोलता है ।
[3] से केणट्ठेषां भंते ! एवं बुच्चइ, सावज्जं प्रि जाब अणवज्जं पि भासं भासति ?
गोयमा ! जाहे णं सक्के देविंदे देवराया सुहुमकायं अनिज्जूहित्ताणं भासं भासति ताहे णं सक्के देविंदे देवराया सावज्जं भासं भासति, जाहे णं सक्के देविंदे देवराया मुहुमकायं निज्जूहित्ताणां भासं भासति ताहे सक्के देविंदे देवराया अणवज्जं भासं भासति, से तेणट्ठेणं जाव भासति ।
[१५-२ प्र] भगवन् ! ऐसा क्यों कहा गया है कि शक्रेन्द्र सावद्य भाषा भी बोलता है और निरवद्य भाषा भी बोलता है ?
[ १५-२ उ.] गौतम! जब देवेन्द्र देवराज शक्र सूक्ष्म काय (अर्थात् हाथ आदि या वस्त्र) से मुख ढँके बिना बोलता है, तब वह सावद्य भाषा बोलता है और जब वह हाथ या वस्त्र से मुख को ढँक कर बोलता है, तब वह निरवद्य भाषा बोलता है । इसी कारण से यह कहा जाता है कि शक्रेन्द्र सावद्य भाषा भी बोलता है और निरवद्य भाषा भी बोलता है ।
१६. सक्के णं भंते ! देविदे देवराया कि भवसिद्धीए, अभवसिद्धीए, सम्मदिट्ठीए ?
एवं जहा मोउस सकुमारो ( स. ३ उ. १ सु. ६२ ) जाव नो अचरिमे ।
[१६ प्र.] भगवन्! देवेन्द्र देवराज शक्र भवसिद्धिक है या अभवसिद्धिक है? सम्यग्दृष्टि है या मिथ्यादृष्ट है ? इत्यादि प्रश्न ।
[१६ उ.] गौतम! तृतीय शतक के प्रथम मोका उद्देशक (सू. ६२) में उक्त सनत्कुमार के अनुसार यहाँ भी अचरम नहीं है (यहाँ तक जानना चाहिए)।