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________________ ५४८ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र २८. एवं कम्मगसरीरं पि। [२८] इसी प्रकार कार्मणशरीर के विषय में भी जानना चाहिए। २९. जीवे णं भंते ! सोतिंदियं निव्वत्तेमाणे किं अधिकरणी, अधिकरणं ? एवं जहेव ओरालियसरीरं तहेव सोइंदियं पि भाणियव्वं । नवरं जस्स अत्थि सोतिंदियं। [२९ प्र.] भगवन् ! श्रोत्रेन्द्रिय को बांधता हुआ जीव अधिकरणी है या अधिकरण है ? [२९ उ.] गौतम ! औदारिकशरीर के वक्तव्य के समान श्रोत्रेन्द्रिय के सम्बन्ध में भी कहना चाहिए। परन्तु (ध्यान रहे । जिन जीवों के श्रोत्रेन्द्रिय हो, उनकी अपेक्षा ही यह कथन है। ३०. एवं चक्खिदिय-घाणिंदिय-जिंब्भिदिय-फासिंदियाणि वि, नवरं जाणियव्वं जस्स जं अत्थि। [३०] इसी प्रकार चक्षुरिन्द्रिय, घ्राणेन्द्रिय, जिह्वेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय के विषय में जानना चाहिए। विशेष, जिन जीवों के जितनी इन्द्रियाँ हों, उनके विषय में उसी प्रकार जानना चाहिए। ३१. जीवे णं भंते ! मणजोगं निव्वत्तेमाणे किं अधिकरणी, अधिकरणं। एवं जहेव सोर्तिदियं तहेव निरवसेसं। [३१ प्र.] भगवन् ! मनोयोग को बांधता हुआ जीव अधिकरणी है या अधिकरण है ? [३१ उ.] जैसे श्रोत्रेन्द्रिय के विषय में कहा, वही सब मनोयोग के विषय में भी कहना चाहिए। ३२. वइजोगो एवं चेव। नवरं एगिदियवज्जाणं। [३२] वचनयोग के विषय में भी इसी प्रकार जानना चाहिए। विशेष वचनयोग में एकेन्द्रियों का कथन नहीं करना चाहिए। ३३. एवं कायजोगो वि, नवरं सव्वजीवाणं जाव वेमाणिए। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्तिः । ॥ सोलसमे सए : पढमो उद्देसओ समत्तो॥१६.१॥ [३३.] इसी प्रकार काययोग के विषय में भी कहना चाहिए। विशेष यह है कि काययोग सभी जीवों के होता है। अतः वैमानिकों तक इसी प्रकार जानना चाहिए। __ हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यों कह कर गौतम स्वामी यावत् विचरते हैं। विवेचन—प्रस्तुत सोलह सूत्रों (सू. १८ से ३३) में पांच शरीरों, पांच इन्द्रियों और तीन योगों की अपेक्षा से सभी जीवों के अधिकरणी एवं अधिकरण होने की सहेतुक प्ररूपणा की गई है। पांच शरीरों की अपेक्षा से—देव और नैरयिक जीवों के औदारिकशरीर नहीं होता है, इसलिए नैरयिकों और देवों को छोड़कर पृथ्वीकायिक आदि दण्डकों के विषय में ही अधिकरणी एवं अधिकरण से सम्बन्धित प्रश्न
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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