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________________ सोलहवां शतक : उद्देशक-१ [२] से केणढेणं भंते ! एवं वुच्चइ अधिकरणी वि, अधिकरण किया ? गोयमा ! अविरतिं पडुच्च। से तेणठेणं जाव अधिकरणं पि। [२१-२ प्र.] भगवन् ! ऐसा क्यों कहा जाता है कि वह अधिकरणी भी है और अधिकरण भी है ? [२१२२] गौतम अविरति के कारण वह यावत् अधिकरण भी है। २२. पुढविकाइएणं भंते ! ओरालियसरीर निव्वत्तेमाणे किं अधिकरणी?' एवं चेवा [२२ प्र.] भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव, औदारिकशरीर को बांधता हुआ अधिकरणी है या अधिकरण है? ["२२ 3.] गौतम! पूर्ववत् समझना चाहिए। २३. एवं जाव मणुस्से। [२३] इसी प्रकार मनुष्य तक जानना चाहिए। २४ एवं वेउव्वियसरीरं पि। नवरं जस्स अत्थि। [२४] इसी प्रकार वैक्रियशरीर के विषय में भी जानना चाहिए। विशेष यह है कि जिन जीवों के शरीर हों, उनके कहना चाहिए। २५. [१] जीवें णं भंते ! आहारगसरीर निव्वत्तेमाणे किं अधिकरणी. पुच्छा। गोयमा ! अधिकरणी वि, अधिकरणं पि। [२५-१ प्र.] भगवन् ! आहारकशरीर बांधता हुआ जीव अधिकरणी है या अधिकरण हैं ? [२५-१ उ.] गौतम ! वह अधिकरणी भी है और अधिकरण भी है। [२] से केणढेणं जाव अधिकरणं पि? गोयमा ! पमादं पडुच्च। से तेणद्वेणं जाव अधिकरण पि। [२५-२ प्र.] भगवन् ! किस कारण से उसे अधिकरणी और अधिकरण कहते हैं ? [२५-२ उ.] गौतम ! प्रमाद की अपेक्षा से वह अधिकरणी भी और अधिकरण भी है। २६. एवं मणुस्से वि। [२६] इसी प्रकार मनुष्य के विषय में जानना चाहिए। २७. तेयासरीरं जहा ओरालियं, नवरं सब्वजीवाणं भाणियब्वं। [२७.] तैजसशरीर का कथन औदारिकशरीर के समान जानना चाहिएं। विशेष यह है कि लैजसशरीरसम्बन्धी वक्तव्य सभी जीवों के विषय में कहना चाहिए।
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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