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सोलसमंसयं: सोलहवां शतक
सोलहवें शतक के उद्देशकों के नाम
१. अहिकरणि १ जरा २ कम्मे ३ जावतियं ४ गंगदत्त ५ सुमिणे य६। । उवयोग ७ लोग ८ बलि ९ ओहि १० दीव ११ उदही १२ दिसा १३ थणिया १४ ॥१॥
(१) सोलहवें शतक में चौदह उद्देशक हैं। यथा -(१) अधिकरणी, (२) जरा, (३) कर्म, (४) यावतीय, (५) गंगदत्त, (६) स्वप्न (७) उपयोग, (८) लोक (९) बलि, (१०) अवधि, (११) द्वीप, (१२) उदधि, (१३) दिशा और (१४) स्तनित ॥१॥
विवेचन–सोलहवें शतक के प्रतिपाद्य विषय–सोलहवें शतक के चौदह उद्देशकों में क्रमशः ये विषय हैं
(१) प्रथम उद्देशक 'अधिकरणी' में अधिकरणी अर्थात् एहरन के विषय में निरूपण है। (२) द्वितीय उद्देशक में 'जरा' आदि अर्थ-विषयक कथन है। (३) तृतीय उद्देशक में कर्म विषयक कथन है।
(४) चतुर्थ उद्देशक का नाम 'यावतीय' है, क्योंकि इसके प्रारम्भ में यावतीय (जावतिय) शब्द है। इसमें कर्मक्षय करने में विविध श्रमणों एवं नारकों में तारतम्य का कथन है।
(५) पंचम उद्देशक में गंगदत्त-सम्बन्धी जीवनवृत्तान्त है। . (६) छठे उद्देशक में स्वप्न-सम्बन्धी मीमांसा की गई है। (७) सप्तम उद्देशक में उपयोग-विषयक प्रतिपादन है। (८) अष्टम उद्देशक में लोकस्वरूप-विषयक कथन है। (९) नौवें उद्देशक में बलीन्द्र-विषयक वक्तव्यता है। (१०) दसवें उद्देशक में अवधिज्ञान-विषयक वक्तव्यता है। (११) ग्यारहवें उद्देशक में द्वीपकुमार-विषयक कथन है। (१२) बारहवें उद्देशक में उदधिकुमार-विषयक कथन है। (१३) तेरहवें उद्देशक में दिशाकुमार-विषयक कथन है, और
(१४) चौदहवें उद्देशक में स्तनितकुमार-विषयक कथन है। १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६९६, ६९७