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________________ पन्द्रहवां शतक ५२७ विवेचन—प्रस्तुत दो सूत्रों में सुमंगल अनगार की सवार्थसिद्ध देवभव में और तत्पश्चात् महाविदेह क्षेत्र में उत्पत्ति और मोक्षगति का निरूपण किया गया है। अजहन्नमणुक्कोसेण सर्वार्थसिद्ध विमानवासी देवों की जघन्य और उत्कृष्ट, या दो प्रकार की स्थिति नहीं है किन्तु सभी देवों की तेतीस सागरोपम की स्थिति होती है।' गोशालक के भावी दीर्घकालीन भवभ्रमण का दिग्दर्शन १३५. विमलवाहणे णं भंते ! राया सुमंगलेणं अणगारेणं सहये जाव भासरासीकए समाणे कहिं गच्छिहिति, कहिं उवज्जिहिति ? । गोयमा ! विमलवाहणे णं राया सुमंगलेणं अणगारेणं सहये जाव भासरासीकए समाणे अहेसत्तमाए पढवीए उक्कोसकालद्वितीयंमि नरगंसि नेरडयत्तारगं उववजिहिति। [१३५ प्र.] भगवन् ! सुमंगल अनगार द्वारा अश्व, रथ और सारथि-सहित भस्म किया हुआ विमलवाहन राजा कहाँ उत्पन्न होगा? [१३५ उ.] गौतम ! सुमंगल अनगार के द्वारा अश्व, रथ और सारथि-सहित भस्म किये जाने पर विमलवाहन राजा अधःसप्तम पृथ्वी में, उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले नरकों में नैरयिकरूप से उत्पन्न होगा। . १३६. से णं ततो अणंतरं उव्वट्टित्ता मच्छेसु उववज्जिहिति। तत्थ वि णं सत्थवज्झे दाहवक्कंतीए कालमासे कालं किच्चा दोच्चं पि अहेसत्तमाए पुढवीए उक्कोसकालट्ठितीयंसि नरगंसि नेरइयत्ताए उववज्जिहिति। [१३६] वहाँ से यावत् उद्वर्त्त (मर) कर फिर सीधा दूसरी बार मत्स्यों में उत्पन्न होगा। वहाँ भी शस्त्र के द्वारा वध होने पर दाहज्वर की पीड़ा से काल करके दूसरी बार फिर अध:सप्तम पृथ्वी में उत्कृष्ट काल की स्थिति वाले नारकावासों में नैरयिकरूप में उत्पन्न होगा। १३७. से णं ततो अणंतरं उव्वट्टित्ता दोच्चं पि मच्छेसु उववजिहिति। तत्थ वि णं सत्थवज्झे जाव किच्चा छट्ठाए तमाए पुढवीए उक्कोसकालद्वितीयंसि नरगंसि नेरइयत्ताए उववजिहिति। [१३७] वहाँ से उद्वर्त्त (मर) कर फिर सीधा दूसरी बार मत्स्यों में उत्पन्न होगा। वहाँ भी शस्त्र से वध होने पर यावत् काल कर छठी तम:प्रभा पृथ्वी में उत्कृष्टकाल की स्थिति वाले नरकावासों में नैरयिकरूप से उत्पन्न होगा। १३८. से णं तओहिंतो जाव उव्वट्टित्ता इत्थियासु उववजिहिति। तत्थ वि णं सत्थवझे दाह० जाव दोच्चं पि छट्ठाए तमाए पुढवीए उक्कोसकाल जाव उव्वट्टित्ता दोच्चं पि इत्थियासु उववजिहिति। तत्थ वि णं सत्थवज्झे जाव किच्चा पंचमाए धूमप्पभाए पुढवीए उक्कोसकाल जाव उव्वट्टित्ता उराएसु उववज्जिहिति। तत्थ वि णं सत्थवज्झे जाव किच्चा दोच्चं पि पंचमाए जाव उव्वट्टित्ता दोच्चं पि उरएसु उववजिहिति जाव किच्चा चउत्थीए पंकप्पभाए पुढवीए उक्कोसकालट्ठितीयंसि जाव उव्वट्टित्ता सीहेसु उववज्जिहिति। तत्थ वि णं सत्थवज्झे तहेव जाव किच्चा दोच्चं पि चउत्थीए पंक० जाव १. भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. ५, पृ. २४८८
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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