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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
कर एक राष्ट्र होता है। कई जिले मिल कर एक प्रान्त होता है। सुमंगल अनगार की भावी गति : सर्वार्थसिद्ध विमान एवं मोक्ष
१३३. सुमंगले णं भंते ! अणगारे विमलवाहणं रायं सहयं जाव भासरासिं करेत्ता कहिं गच्छिहिति कहिं उववजिहिति ?
गोयमा ! सुमंगले णं अणगारे विमलवाहणं रायं सहयं भासरासिं करेत्ता बहुहिं चउत्थछट्ठमदसम-दुवालस जाव विचित्तेहिं तवोकम्मेहि अप्पाणं भावेमाणं बहूई वासाइं सामण्णपरियागं पाउणेहिति, बहुइं० पा० २ मासियाए संलेहणाए सर्टि भत्ताई अणसणाए जाव छेदेत्ता आलोइयपडिक्कंते समाहिपत्ते कालमासे० उडं चंदिम जाव गेवेज्जविमाणावाससयं वीतीवडत्ता महाविमाणे देवत्ताए उववज्जिहिति। तत्थ णं देवाणं अजहन्नमणुक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं ठिती पन्नता। तत्थ णं सुमंगलस्स वि देवस्स अजहन्नमणुक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई ठिती पन्नत्ता।
[१३३ प्र.] भगवन् ! सुमंगल अनगार, अश्व, रथ और सारथि सहित (राजा विमलवाहन को) भस्म का ढेर करके, स्वयं काल करके कहाँ जाएंगे, कहाँ उत्पन्न होंगे?
___ [१३३ उ.] गौतम ! विमलवाहन राजा को घोड़ा, रथ और सारथि सहित भस्म करने के पश्चात् सुमंगल अनगार बहुत-से उपवास (चउत्थ), बेला (छ8), तेला (अट्ठम), चौला (दशम), पंचौला (द्वादश) यावत् विचित्र प्रकार के तपश्चरणों से अपनी आत्मा को भावित करते हुए बहुत वर्षों तक श्रामण्य-पर्याय का पालन करेंगे। फिर एक मास की संलेखना से साठ भक्त अनशन का यावत् छेदन करेंगे और आलोचना एवं प्रतिक्रमण करके समाधिप्राप्त होकर काल के अवसर में काल करेंगे। फिर वे ऊपर चन्द्र, सूर्य, यावत् एक सौ ग्रैवेयक विमानवासों का अतिक्रमण करके सर्वार्थसिद्ध महाविमान में देवरूप से उत्पन्न होंगे। वहाँ देवों की अजघन्यानुत्कृष्ट (जघन्य और उत्कृष्टता से रहित) तेतीस सागरोपम की स्थिति कही गई है। वहाँ सुमंगल देव की भी अजघन्यानुत्कृष्ट (पूरे) तेतीस सागरोपम की स्थिति होगी।
१३४. से णं भंते ! सुमंगले देवे ताओ देवलोगाओ जाव महाविदेहे वासे सिज्झिहिति जाव अंतं काहिति।
[१३४ प्र.] भगवन् ! वह सुमंगलदेव उस देवलाक से च्यव कर कहाँ जाएगा, कहाँ उत्पन्न होगा?
[१३४ उ.] गौतम ! वह सुमंगलदेव उस देवलोक से च्यवकर यावत् महाविदेह क्षेत्र में जन्म लेकर सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होगा, यावत् सर्वदुःखों का अन्त करेगा।
१. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६९२
स्वाम्यामात्यश्च राष्ट्रं च कोशो दुर्गं बलं सुहृत् । सप्तांगमुच्यते राज्यं बुद्धिसत्त्वसमाश्रयम् ॥ राष्ट्रं जनपदैकदेशः।