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________________ ५१२ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र खलु अज्जो ! ममं अंतेवासी सीहे नामं अणगारे पगतिभद्दए०, तं चेव सव्वं भाणियव्वं जाव परुन्ने। तं गच्छह णं अज्जो ! तुब्भे सीहं अणगारं सद्दह।' [११८] (उस समय) आर्यो! इस प्रकार से श्रमण भगवान् महावीर ने श्रमण निर्ग्रन्थों को आमंत्रित कर यो कहा—'हे आर्यो ! आज मेरा अन्तेवासी (शिष्य) प्रकृतिभद्र यावत् विनीत सिंह नामक अनगार, इत्यादि सब वर्णन पूर्ववत् कहना; यावत् अत्यन्त जोर-जोर से रो रहा है। इसलिए, हे आर्यो ! तुम जाओ और सिंह अनगार को यहाँ बुला लाओ।' ११९. तए णं ते समणा निग्गंथा समणेणं भगवया महावीरेणं एवं वुत्ता समाणा समणं भगवं महावीरं वंदति नमसंति, वं० २ समणस्स भगवतो महावीरस्स अंतियातो सालकोट्ठयातो चेतियातो पडिनिक्खमंति, सा० प० २ जेणेव मालुयाकच्छए, जेणेव सीहे अणगारे तेणेव उवागच्छंति, उवा० २ सीहं अणगारं एवं वयासी—'सीहा ! धम्मायरिया सद्दावेंति।' । [११९] श्रमण भगवान् महावीर ने जब उन श्रमण-निर्ग्रन्थों से इस प्रकार कहा, तो उन्होंने श्रमण भगवान् महावीर को वन्दन-नमस्कार किया। फिर भगवान् महावीर के पास से मालकोष्ठक उद्यान से निकल कर, वे मालुकाकच्छवन में, जहाँ सिंह अनगार थे, वहाँ आए और सिंह अनगार से कहा—'हे सिंह ! धर्माचार्य तुम्हें बुलाते हैं।' १२०. तए णं से सीहे अणगारे समणेहि निग्गंथेहिं सद्धिं मालुयाकच्छगाओ पडिनिक्खमति, प० २ जेणेव सालकोट्ठए चेतिए जेणेव समणे भगवं महावीरे तेणेव उवागच्छइ, उवा० समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिण० जाव पजुवासति। [१२०] तब सिह अनगार उन श्रमण-निर्ग्रन्थों के साथ मालुकाकच्छ से निकल कर शालकोष्ठक उद्यान में जहाँ, श्रमण भगवान् महावीर विराजमान थे, वहाँ आए और श्रमण भगवान् महावीर को तीन बार दाहिनी ओर से प्रदक्षिणा करके यावत् पर्युपासना करने लगे। विवेचन—प्रस्तुत पांच सूत्रों (सू. ११६ से १२०) में सिंह अनगार से सम्बन्धित पांच बातों का निरूपण है (१) मालुकाकच्छ के निकट आतापनासहित छठ-छठ तप करने वाले भगवान् महवीर के शिष्य सिंह अनगार थे। (२) भगवान् की छाद्मस्थिक अवस्था में मृत्यु हो जाएगी, यह बात सुनकर मनोदुःखपूर्वक सिंह अनगार का अत्यन्त रुदन। (३) श्रमण-निर्ग्रन्थों को सिंह अनगार को बुला लाने का भगवान् का आदेश। (४) सिंह अनगार के पास जा कर निर्ग्रन्थों ने भगवान् का सन्देश सुनाया।
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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