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________________ ५१० व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र श्याम, श्याम प्रभा वाला, यावत् महामेघ के समान था, पत्रित, पुष्पित, फलित और हरियाली से अत्यन्त लहलहाता हआ. वनश्री से अतीव शोभायमान रहता था। ११३. तत्थ णं मेंढिग्गामे नगरे रेवती नाम गाहावतिणी परिवसति अड्डा अपरिभूया। [११३] उस मेंढिकग्राम नगर में रेवती नाम की गाथापत्नी रहती थी। वह आढ्य यावत् अपराभूत थी। ११४. तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नदा कदायि पुव्वाणुपुव् िचरमाणे जाव जेणेव मेंढियग्गामे नगरे जेणेव सालकोट्ठए चेतिए जाव परिसा पडिगया। [११४] किसी दिन श्रमण भगवान् महावीर स्वामी क्रमशः विचरण करते हुए मेंढिकग्राम नामक नगर के बाहर, जहाँ शालकोष्ठक उद्यान था, वहाँ पधारे; यावत् परिषद् वन्दना करके लौट गई। ११५. तए णं समणस्स भगवओ महावीरस्स सरीरगंसि विपुले रोगायंके पाउब्भूते उज्जले जाव दुरहियासे। पित्तज्जरपरिगयसरीरे दाहवक्कंतिए यावि विहरति। अवि याऽऽइं लोहियवच्चाई पि पकरेति। चाउव्वण्णं च णं वागरेति—'एवं खलु समणे भगवं महावीरे गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स तवेणं तेएणं अन्नाइटे समाणे अंतो छण्हं मासाणं पित्तज्जरपरिगयसरीरे दाहवतंतिए छउमत्थे चेव कालं करेस्सति। [११५] उस समय श्रमण भगवान् महावीर के शरीर में महापीडाकारी व्याधि उत्पन्न हुई, जो उज्ज्वल (अत्यन्त दाहकारी) यावत दरधिसह्य (द:सह) थी। उसने पित्तज्वर से सारे शरीर को व्याप्त कर लिया था, और ( उसके कारण) शरीर में अत्यन्त दाह होने लगी। तथा (इस रोग के प्रभाव से) उन्हें रक्त-युक्त दस्तें भी लगने लगीं। भगवान् के शरीर को ऐसी स्थिति में जान कर चारों वर्ण के लोग इस प्रकार कहने लगे—(सुनते हैं कि) श्रमण भगवान् महावीर मंखलिपुत्र गोशालक की तपोजन्य तेजोलेश्या से पराभत होकर पित्तज्वर एवं दाह से पीडित होकर छह मास के अन्दर छद्मस्थ-अवस्था में ही मृत्यु प्राप्त करेंगे। विवेचन—प्रस्तुत पांच सूत्रों (१११ से ११५) में भगवान् महावीर के जीवन से सम्बन्धित पांच बातों का संक्षिप्त परिचय दिया गया है (१) श्रमण भगवान् महावीर का श्रावस्ती से अन्य जनपदों में विहार। (२) मेंढिकग्राम नगर, शालकोष्ठक, यावत् पृथ्वीशिलापट्टक एवं मालुकाकच्छ का परिचय। (३) मेंढिकग्राम नगरवासी रेवती गाथापत्नी का परिचय। (४) भगवान् का मेंढिकग्राम में पदार्पण, परिषद् द्वारा धर्मश्रवण। (५) इसी बीच भगवान् के शरीर में पित्तज्वर का भयंकर प्रकोप हुआ, जिससे सारे शरीर में दाह एवं खून की दस्ते होने लगीं। चतुर्वर्णीय-जनता में यह अफवाह फैल गई कि भगवान् महावीर गोशालक द्वारा फेंकी हुई तेजोलेश्या के प्रभाव से पित्तज्वराक्रान्त एवं दाहपीडित होकर छह मास के अन्दर छद्मस्थ-अवस्था में ही मर जाएँगे। १. वियाहण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण) भा. २, पृ. ७२७-७२८
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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