________________
पन्द्रहवाँ शतक
५०९ सुगन्धित गन्धोदक से नहलाया, इत्यादि पूर्वोक्त वर्णनानुसार यावत् महान् ऋद्धि-सत्कार-समुदाय (बड़े ठाठबाट) के साथ मंखलिपुत्र गोशालक के मृत शरीर का निष्क्रमण किया।
विवेचन--प्रस्तुत सूत्र (११०) में गोशालंक के द्वारा अप्रतिष्ठापूर्वक अपनी मरणोत्तरक्रिया करने की दिलाई हुई शपथ का स्थविरों द्वारा कल्पित औपचारिकरूप से पालन किये जाने तथा पूर्वोक्त रूप से ही ऋद्धिसत्कारपूर्वक मरणोत्तरक्रिया किये जाने का वृत्तान्त प्रतिपादित है।
___कठिन शब्दार्थ-पिहेंति—बंद किये।आलिहंति—चित्रित की।सुंबेणं मूंज की रस्सी से।णीयंणीयं * सद्देणं—मन्द-मन्द स्वर से। सवहपडिमोक्खणगं—दिलाई हुई शपथ से मुक्ति (छुटकारा) अवगुणंतिखोले।
पूयासक्कार-थिरीकरणट्ठाएं : आशय-पूर्व प्राप्त पूजा-सत्कार की स्थिरता के हेतु। स्थविरों का आशय यह था कि यदि हम गोशालक के मृत शरीर की विशिष्ट पूजा-प्रतिष्ठा नहीं करेंगे तो लोग समझेंगे कि गोशालक न तो 'जिन' हुआ और न ये स्थविर 'जिन' शिष्य हैं, इस प्रकार पूजा-सत्कार अस्थिर (ठप्प) हो जाएँगे, इस दृष्टि से पूजा-सत्कार को लोकमानस में स्थिर रखने के लिए स्थविरों ने गोशालक के शव की ठाटबाट से उत्तरक्रिया की। भगवान् का मेंढिकग्राम में पदार्पण, वहाँ रोगाक्रान्त होने से लोकप्रवाद
१११. तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नदा कदायि सावत्थीओ नगरीओ कोट्ठयाओ चेतियाओ पडिनिक्खमति, पडि० २ बहिया जणवयविहारं विहरति।
[१११] तदनन्तर किसी दिन श्रमण भगवान् महावीर श्रावस्ती नगरी के कोष्ठक उद्यान से निकले और उससे बाहर अन्य जनपदों में विचरण करने लगे।
११.२. तेणं कालेणं तेणं समएणं मेंढियग्गामे नामं नगरे होत्था।वण्णओ। तस्स णं मेंढियग्गामस्स नगरस्स बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीभागे एत्थ णं सालकोट्ठए' नामं चेतिए होत्था। वण्णओ। जाव पुढविसिलापट्टओ। तस्स णं सालकोट्ठगस्स चेतियस्स अदूरसामंते एत्थ णं महेगे मालुयाकच्छए यावि होत्था, किण्हे किण्होभासे जाव निकुरुंबभूए पत्तिए पुष्फिए फलिए हरियगरेरिजमाणे सिरीए अतीव अतीव उवसोभेमाणे उवसोभेमाणे चिट्ठति।
[११२] उस काल उस समय में मेंढिकग्राम नामक नगर था। (उसका) वर्णन (पूर्ववत्) ।उस मेंढिकग्राम नगर के बाहर उत्तरपूर्व दिशा में शालकोष्ठक नामक उद्यान था। उसका वर्णन पूर्ववत् यावत् (वहाँ एक) पृथ्वीशिलापट्टक था, (तक) करना चाहिए। उस शालकोष्ठक उद्यान के निकट एक महान् मालुकाकच्छ था। वह
१. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६८५
(ख) भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. ५, पृ. २४६१ २. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६८५ ३. पाठान्तर—'साणकोट्ठए'