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________________ ५०६ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र नगरी के श्रृंगाटक यावत् महापथों (राजमार्गों) में (होकर ले जाते समय) उच्चस्वर से उद्घोषणा करते हुए इस प्रकार कहना—हे देवानुप्रियो ! यह मंखलिपुत्र गोशालक जिन, जिनप्रलापी है, यावत् जिन शब्द का प्रकाश करता हुआ विचरण कर इस अवसर्पिणी काल के चौवीस तीर्थंकरों में से अन्तिम तीर्थंकर हो कर सिद्ध हुआ है, यावत् समस्त दुःखों से रहित हुआ है।' इस प्रकार ऋद्धि (ठाट-बाट) और सत्कार के साथ मेरे शरीर का नीहरण करना (बाहर निकालना)। उन आजीविक स्थविरों ने मंखलीपुत्र गोशालक की बात को विनयपूर्वक स्वीकार किया। विवेचन—प्रस्तुत सूत्र (१०८) में गोशालक द्वारा अपनी मृत्यु निकट जान कर अपने अनुगामी स्थविरों को शरीर सुसज्जित कर धूमधाम से शवयात्रा निकाल कर मरणोत्तरक्रिया करने के दिये गए निर्देश का वर्णन __ कठिन शब्दार्थ हंसलक्खणं : दो अर्थ—(१) हंस जैसा शुक्ल या (२) हंसचिह्नवाला। नियंसेहपहनाना। सीयं—शिविका। नीहरणं—बाहर निकालना (मरणोत्तरक्रिया)। सम्यक्त्वप्राप्त गोशालक द्वारा अप्रतिष्ठापूर्वक मरणोत्तर क्रिया करने का शिष्यों को निर्देश १०९. तए णं तस्स गोसालस्स मंखलिपुत्तस्स सत्तरत्तंसि परिणममाणंसि पडिलद्धसम्मत्तस्स अयमेयारूवे अज्झथिए जाव समुप्पजित्था—"णो खलु अहं जिणे जिणप्पलावी जाव जिणसदं पगासेमाणे विहरिए. अहं णं गोसाले चेव मंखलिपत्ते समणघातए समणमारए समणपडिणीय. आयरिय-उवज्झायाणं अयसकारए अवण्णकारए अकित्तिकारए बहूहिं असब्भावुब्भावणाहिं मिच्छत्ताभिनिवेसेहि य अप्पाणं वा परं वा तदुभयं वा वुग्गाहेमाणे वुप्पाएमाणे विहरित्ता, सएणं तेएणं अन्नाइटे समाणे अंतोसत्तरत्तस्स पित्तज्जरपरिगयसरीरे दाहवक्कंतीए छउमत्थे चेव कालं करेस्सं। समणे भगवं महावीरे जिणे जिणप्पलावी जाव जिणसदं पगासेमाणे विहरति।' एवं संपेहेति, एवं सं० २ आजीविए थेरे सद्दावेइ, आ० स० २ उच्चासवयवहसाविए करेति, उच्चा० क० एवं वदासि—" नो खलु अहं जिणे जिणप्पलावी जाव पकासेमाणे विहरति, अहं णं गोसाले चेव मंखलिपुत्ते समणघातए जाव छउमत्थे चेव कालं करेस्सं। समणे भगवं महावीरे जिणे जिणप्पलावी जाव जिणसदं पगासेमाणे विहरति। तं तुब्भे णं देवाणुप्पिया ! ममं कालगयं जाणित्ता वामे पाए संबेणं बंधह, वामे० बं० २ तिक्खुत्तो मुहे उट्ठभह, ति० उ० २ सावत्थीए नगरीए सिंघाडग० जाव पहेसु आकड्डविकड्ढेि करेमाणा महया महया सद्देणं उग्घोसेमाणा एवं वदह–'नो खलु देवाणुप्पिया ! गोसाले मंखलिपुत्ते जिणे जिणप्पलावी जाव विहरिए, एसंणे गोसाले चेव मंखलिपुत्ते समणघायए जाव छउमत्थे चेव कालगते, समणे भगवं महावीरे जिणे जिणप्पलावी जाव विहरति।' महता अणिड्डिसक्कारसमुदएणं ममं सरीरगस्स १. वियाहपण्णत्तिसुत्तं, भा २ पृ. ७२५-७२६ २. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ३८५
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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