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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
प्रश्न । विलिए— अकार्यकृत लज्जा से विषण्ण, अथवा व्रीडित — लज्जित । विड्डे – व्रीडित, अधिक लज्जित । ' अयंपुल की डगमगाती श्रद्धा स्थिर हुई, गोशालक से समाधान पाकर संतुष्ट, गोशालक द्वारा वस्तुस्थिति का अपलाप
९९. तए णं ते आजीविया थेरा अयंपुलं आजीवियोवासगं लज्जियं जाव पच्चीसक्कमाण पासंति, पां० २ एवं वदासि — एहि ताव अयंपुला ! इतो ।
[९९] जब आजीविक-स्थविरों ने आजीवविकोपासक अयंपुल को लज्जित होकर यावत् पीछे जाते हुए देखा, तो उन्होंने उसे सम्बोधित कर कहा - 'हे अयंपुल ! यहाँ आओ।'
१००. तए णं से अयंपुले आजीवियोवासए आजीवियथेरेहिं एवं वुत्ते समाणे जेणेव आजीविया थेरा तेणेव उवागच्छइ, उवा० २ अजीविए थेरे वंदति नम॑सति, वं० २ नच्चासन्ने जाव पज्जुवासति । [१००] आजीविक-स्थविरों द्वारा इस प्रकार (सम्बोधित करके) बुलाने पर अयंपुल आजीविकोपा उनके पास आया और उन्हें वन्दना - नमस्कार करके उनसे न अत्यन्त निकट और न अत्यन्त दूर बैठकर यात् पर्युपासना करने लगा।
१०१. ‘अयंपुल !' त्ति आजीविया थेरा अयंपुलं आजीवियोवासगं एवं वदासी—' से नूणं ते अयंपुला ! पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि जाव किंसठिया हल्ला पन्नत्ता ? तए णं तव अयंपुला ! दोच्चं पि अयमेयारूवे०, तं चेव सव्वं भाणियव्वं जाव सावत्थिं नगरिं मज्झमज्झेणं जेणेव हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणे जेणेव इहं तेणेव हव्वमागए, से नूण ते अयंपुला ! अट्ठे समट्ठे ?'
'हंता, अत्थि ।'
जं पिय अयंपुला ! तव धम्मायरिए धम्मोवएसए गोसाले मंखलिपुत्ते हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणंसि अंबकूणगहत्थगए जाव अंजलिकम्मं करेमाणे विहरइ तत्थ वि णं भगवं इमाई अट्ठ रिमाइं पन्नवेति, तं जहा- चरिमे पाणे जाव अंतं करेस्सति । जं पि य अयंपुला ! तव धम्मायरिए धम्मोवएसए गोसाले मंखलिपुत्ते सीयलएणं मट्टिया जाव विहरति, तत्थ वि णं भगवं इमाई चत्तारि पाणगाई, चत्तारि अपाणगाई पन्नवेति । से किं तं पाणए ? पाणए जाव ततो पच्छा सिज्झति जाव अंतं करेति । तं गच्छ णं तुमं अयंपुला ! एस चेव ते धम्मायरिए धम्मोवएसए गोसाले मंखलिपुत्ते इमं एयारूवं वागरणं वागरेहिति ।
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[१०१] 'हे अयंपुल' ! इस प्रकार सम्बोधन करके आजीविक - स्थविरों ने आजीविकोपासक अयंपुल से इस प्रकार कहा— हे अयंपुल ! आज पिछली रात्रि के समय यावत् तुझे ऐसा मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ
१. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६८४
(ख) पाइअसद्दमहण्णवो. पृ. ७८१, ७९९