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________________ ५०२ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र प्रश्न । विलिए— अकार्यकृत लज्जा से विषण्ण, अथवा व्रीडित — लज्जित । विड्डे – व्रीडित, अधिक लज्जित । ' अयंपुल की डगमगाती श्रद्धा स्थिर हुई, गोशालक से समाधान पाकर संतुष्ट, गोशालक द्वारा वस्तुस्थिति का अपलाप ९९. तए णं ते आजीविया थेरा अयंपुलं आजीवियोवासगं लज्जियं जाव पच्चीसक्कमाण पासंति, पां० २ एवं वदासि — एहि ताव अयंपुला ! इतो । [९९] जब आजीविक-स्थविरों ने आजीवविकोपासक अयंपुल को लज्जित होकर यावत् पीछे जाते हुए देखा, तो उन्होंने उसे सम्बोधित कर कहा - 'हे अयंपुल ! यहाँ आओ।' १००. तए णं से अयंपुले आजीवियोवासए आजीवियथेरेहिं एवं वुत्ते समाणे जेणेव आजीविया थेरा तेणेव उवागच्छइ, उवा० २ अजीविए थेरे वंदति नम॑सति, वं० २ नच्चासन्ने जाव पज्जुवासति । [१००] आजीविक-स्थविरों द्वारा इस प्रकार (सम्बोधित करके) बुलाने पर अयंपुल आजीविकोपा उनके पास आया और उन्हें वन्दना - नमस्कार करके उनसे न अत्यन्त निकट और न अत्यन्त दूर बैठकर यात् पर्युपासना करने लगा। १०१. ‘अयंपुल !' त्ति आजीविया थेरा अयंपुलं आजीवियोवासगं एवं वदासी—' से नूणं ते अयंपुला ! पुव्वरत्तावरत्तकालसमयंसि जाव किंसठिया हल्ला पन्नत्ता ? तए णं तव अयंपुला ! दोच्चं पि अयमेयारूवे०, तं चेव सव्वं भाणियव्वं जाव सावत्थिं नगरिं मज्झमज्झेणं जेणेव हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणे जेणेव इहं तेणेव हव्वमागए, से नूण ते अयंपुला ! अट्ठे समट्ठे ?' 'हंता, अत्थि ।' जं पिय अयंपुला ! तव धम्मायरिए धम्मोवएसए गोसाले मंखलिपुत्ते हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणंसि अंबकूणगहत्थगए जाव अंजलिकम्मं करेमाणे विहरइ तत्थ वि णं भगवं इमाई अट्ठ रिमाइं पन्नवेति, तं जहा- चरिमे पाणे जाव अंतं करेस्सति । जं पि य अयंपुला ! तव धम्मायरिए धम्मोवएसए गोसाले मंखलिपुत्ते सीयलएणं मट्टिया जाव विहरति, तत्थ वि णं भगवं इमाई चत्तारि पाणगाई, चत्तारि अपाणगाई पन्नवेति । से किं तं पाणए ? पाणए जाव ततो पच्छा सिज्झति जाव अंतं करेति । तं गच्छ णं तुमं अयंपुला ! एस चेव ते धम्मायरिए धम्मोवएसए गोसाले मंखलिपुत्ते इमं एयारूवं वागरणं वागरेहिति । 1 [१०१] 'हे अयंपुल' ! इस प्रकार सम्बोधन करके आजीविक - स्थविरों ने आजीविकोपासक अयंपुल से इस प्रकार कहा— हे अयंपुल ! आज पिछली रात्रि के समय यावत् तुझे ऐसा मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ १. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६८४ (ख) पाइअसद्दमहण्णवो. पृ. ७८१, ७९९
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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