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________________ पन्द्रहवाँ शतक ५०१ समुप्पजित्था—'एवं खलु ममं धम्मायरिए धम्मोवएसए गोसाले मंखलिपुत्ते उप्पन्ननाण-दंसणधरे जाव सव्वण्णू सव्वदरिसी इहेव सावत्थीए नगरीए हालाहलाए कुम्भकारीए कुंभकारावणंसि आजीवियसंघसंपरिवुडे आजीवियसमएणं अप्पाणं भावेमाणे विहरति, तं सेय खलु मे कल्लं जाव जलंते गोसालं मंखलिपुत्तं वंदित्ता जाव पज्जुवासेत्ता, इमं एयारूवं वागरणं वागरित्तए' त्ति कट्ट एवं संपेहेति, एवं सं० २ कल्लं जाव जलंते ण्हाए कय जाव अप्पमहग्याभरणालंकियसरीरे साओ गिहाओ पडिनिक्खमइ, साओ० प० २ पादविहारचारेणं सावत्थिं नगरि मझमझेणं जेणेव हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणे तेणेव उवागच्छति, ते० उ० २ पासति गोसालं मंखलिपुत्तं हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणंसि अंबऊणगहत्थगयं जाव अंजलिकम्मं करेमाणं सीयलएणं मट्टिया जाव गायाई परिसिंचमाणं, पासित्ता लज्जिए विलिए विड्डे सणियं सणियं पच्चोसक्कइ। [९८] तदनन्तर उस आजीविकोपासक अयंपुल को ऐसा अध्यवसाय यावत् मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ कि 'मेरे धर्माचार्य धर्मोपदेशक मंखलिपुत्र गोशालक, उत्पन्न (अतिशय) ज्ञान-दर्शन के धारक, यावत् सर्वज्ञ-सर्वदर्शी हैं । वे इसी श्रावस्ती नगरी में हालाहला कुम्भारिन की दूकान में आजीविकसंघ सहित आजीविकसिद्धान्त से अपनी आत्मा को भावित करते हुए विचरते हैं। अत: कल प्रातःकाल यावत् तेजी से जाज्वल्यमान सूर्योदय होने पर मंखलिपुत्र गोशालक को वन्दना यावत् पर्युपासना करके यह प्रश्न पूछना श्रेयस्कर होगा।' ऐसा विचार करके उसने दूसरे दिन प्रातः सूर्योदय होने पर स्नान-बलिकर्म किया। फिर अल्पभार और महामूल्य वाले आभूषणों से अपने शरीर को अलंकृत कर वह अपने घर से निकला और पैदल चलकर श्रावस्ती नगरी के मध्य में से होता हुआ हालाहला कुम्भरिन की दूकान पर आया। वहाँ आकर उसने मंखलिपुत्र गोशालक को हाथ में आम्रफल लिए हुए, यावत् (नाचते-गाते तथा) हालाहला कुम्भारिन को अंजलिकर्म करते हुए, मिट्टी मिले हुए शीतल जल से अपने शरीर के अवयवों को बार-बार सिंचन करते हुए देखा तो देखते ही लज्जित, उदास और वीडित (अधिक लज्जित) हो गया और धीरे-धीरे पीछे खिसकने लगा। विवेचन—प्रस्तुत तीन सूत्रों (९६-९७-९८) में प्रथम सूत्र में आजीविकोपासक अयंपुल का सामान्य परिचय, द्वितीय सूत्र में कुटुम्ब जागरण करते हुए उसके मन में हल्ला नामक कीट के आकार को जानने के उत्पन्न विचार का वर्णन है, और तृतीय सूत्र में धर्माचार्य मंखलीपुत्र गोशालक से इस जिज्ञासा का समाधान पाने के उत्पन्न हुए संकल्प का तथा तदनुसार गोशालक के पास पहुँचने और गोशालक की उन्मत्तवत् दशा देखकर उसके पीछे खिसकने का वृतान्त दिया गया है। कठिन शब्दों का अर्थ हल्ला-गोवालिका तृण के समान आकारवाला एक कीटविशेष। वागरणं १. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) भा. २, पृष्ठ ७२२-७२३
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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