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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
९०. से किं तं पाणए ? पाणए चउबिहे पन्नत्ते, तं जहा—गोपुट्ठए हत्थमद्दियए आयवतत्तए सिलापब्भट्ठए। सेत्तं पाणए। [९० प्र.] पानक (पेय जल) क्या है ?
[९० उ.] पानक चार प्रकार का कहा गया है । यथा-(१) गाय की पीठ से गिरा हुआ, (२) हाथ से सला हुआ, (३) सूर्य के ताप से तपा हुआ और (४) शिला से गिरा हुआ। यह (चतुर्विध) पानक है।
९१. से किं तं अपाणए ? अपाणए चउव्विहे पन्नत्ते, तं जहा–थालपाणए तयापाणए सिंबलिपाणए सुद्धपाणए । [९१ प्र.] अपानक क्या है ?
[९१ उ.] अपानक चार प्रकार का कहा गया है। यथा-(१) स्थाल का पानी, (२) वृक्षादि की छाल का पानी, (३) सिम्बली (मटर आदि की फली) का पानी और (४) शुद्ध पानी। .
९२. से किं तं थालपाणए ?
थालपाणए जे णं दाथालगं वा दावारगं वा दाकुंभगं वा दाकलसं वा सीयलगं उल्लगं हत्थेहिं परामुसइ, न य पाणियं पियइ से तं थालपाणए।
[९२ प्र.] वह स्थाल-पानक क्या है?
[९२ उ.] स्थाल-पानक वह है, जो पानी से भीगा हुआ स्थाल (थाल) हो, पानी से भीगा हुआ वारक (करवा, सकोरा या मिट्टी का छोटा बर्तन) हो, पानी से भीगा हुआ बड़ा घड़ा (मटका) हो अथवा पानी से भीगा हुआ कलश (छोटा घड़ा) हो, या पानी से भीगा हुआ मिट्टी का बर्तन (शीतलक) हो जिसे हाथों से स्पर्श किया जाए, किन्तु पानी पीया न जाए, यह स्थाल-पानक कहा गया है।
९३. से किं तं तयापाणए ?
तयापाणए जे णं अंबं वा अंबाडगं वा जहा पयोगपए जाव बोरं वा तिंदुरुयं वा तरुणगं आमगं आसगंसि आवीलेति वा पवीलेति वा, न य पाणियं पियइ से तं तयापाणए।
[९३ प्र.] त्वचा-पानक किस प्रकार का होता है ?
[९३ उ.] त्वचा-पानक (वृक्षादि की छाल का पानी) वह है, जो आम्र, अम्बाडग इत्यादि प्रज्ञापनासूत्र के सोलहवें प्रयोग पद में कहे अनुसार, यावत् बेर, तिन्दुरुक (टेंबरू) पर्यन्त (वृक्षफल) हो तथा जो तरुण (नया-ताजा) एवं अपक्व (कच्चा) हो. (उसकी छाल को) मुख में रख कर थोड़ा चूसे या विशेष रूप से चूसे, परन्तु उसका पानी न पीए। यह त्वचा-पानक कहलाता है।
१. जाव शब्द सूचक पाठ-भव्वं वा फणसं वा दालिमं वा इत्यादि। -पण्णवणासुत्तं भा-१ सू. १११२, पृ. २७३