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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र २२-२४) तहेव आपुच्छइ, तहेव जाव उच्च-नीय-मज्झिम जाव अडमाणे हालाहलाए कुंभकारीए कुभकारवणस्स अदूरसामंतेणं वीईवयह।
[६२] उस काल उस समय में श्रमण भगवान् महावीर का अन्तेवासी (शिष्य) आनन्द-नामक स्थविर था। वह प्रकृति से भद्र यावत् विनीत था और निरन्तर छठ-छठ (बेले-बेले) का तपश्चरण करता हुआ और संयम एवं तप से अपनी आत्मा को भावित करता हुआ विचरता था। उस दिन आनन्द स्थविर ने अपने छठक्षमण (बेले के तप) के पारणे के दिन प्रथम पौरुषी (प्रहर) में स्वाध्याय किया, यावत्-(शतक २, उ.५ सू. २२-२४ में कथित) गौतमस्वामी (की चर्या) के समान भगवान् से (भिक्षाचर्या की) आज्ञा मांगी और उसी प्रकार ऊँच, नीच और मध्यम कुलों में यावत् भिक्षार्थ पर्यटन करता हुआ हालाहला कुम्भारिन की बर्तनों की दूकान के पास से गुजरा।
६३. तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते आणंदं थेरं हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावाणस्स अदूरसामंतेणं वीतीवयमाणं पासति, पासित्ता एवं वयासी-एहि ताव आणंदा ! इओ एगं महं ओवमियं निसामेहि।
[६३] जब मंखलिपुत्र गोशालक ने आनन्द स्थविर को हालाहला कुम्भारिन की बर्तनों की दूकान के निकट से जाते हुए देखा, तो इस प्रकार बोला—'अरे आनन्द ! यहाँ आओ, एक महान् (विशिष्ट या मेरा) दृष्टान्त सुन लो।'
६४. तए णं से आणंदे थेरे गोसालेणं मंखलिपुत्तेणं एवं वुत्ते समाणे जेणेव हालाहलाए कुंभकारीए कुंभकारावणे जेणेव गोसाले मंखलिपुत्ते तेणेव उवागच्छति।
[६४] गोशालक के द्वारा इस प्रकार कहने पर आनन्द स्थविर, हालाहला कुम्भारिन की बर्तनों की दूकान में (बैठे) गोशालक के पास आया।
६५. तए णं से गोसाले मंखलिपुत्ते आणंदं थेरं एवं वदासी
"एवं खलु आणंदा ! इतो चिराप्तीयाए अद्धाए केयी उच्चावया वणिया अत्थऽत्थी अत्थलुद्धा अत्थगवेसी अत्थकंखिया अत्थपिवासा अत्थगवेसणयाए नाणाविहविउलपणियभंडमायाए सगडीसागडेणं सुबहुँ भत्त-पाणपत्थयणं गहाय एगं महं अगामियं अणोहियं छिन्नावायं दीहमद्धं अडविं अणुप्पविट्ठा।
"तए णं तेसिं वाणियाणं तीसे आगामियाए अणोहियाए छिन्नावायाए दीहमद्धाए अडवीए कंचि देसं अणुप्पत्ताणं समाणाणं से पुव्वगहिए उदए.अणुपुव्वेणं परिभुजमाणे परिभुजमाणे खीणे।
"तए णं वे वणिया खीणोदगा समाणा तण्हाए परिब्भवमाण अन्नमन्नं सद्दावेंति, अन्न० स० २ एवं वयासी—'एवं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं इमीसे आगामियाए जाव अडवीए कंचि देसं अणुप्पत्ताणं सामणाणं से पुव्वगहिते उदए अणुपुव्वेणं परिभुजमाणे परिभुजमाणे खीणे, तं सेयं खलु देवाणुप्पिया ! अम्हं इमीसे अगामियाए जाव अडवीए उदगस्स सव्वतो समंता मग्गणगवेसणं करेत्तए' त्ति कट्ट