________________
पन्द्रहवाँ शतक
●
•
C
•
Q
•
४४१
तेजोलेश्या छोड़ी। उनमें से एक तत्काल भस्म हो गए, दूसरे अनगार पीडित हो गए।
इसके पश्चात् भी जब गोशालक ने भगवान् को छह मास के अन्त में पित्तज्वर से दाहपीडावश छद्मस्थावस्था में ही मरने की धमकी दी तो भगवान् ने जनता में मिथ्याप्रचार की सम्भावना को लेकर प्रतिवाद किया और कहा— गोशालक सात रात्रि में ही पित्तज्वर से पीडित होकर छद्मस्थ अवस्था में मृत्यु को प्राप्त होगा तथा स्वयं १६ वर्ष तक जीवित रहने की भविष्यवाणी की। भगवान् के साधुओं ने गोशालक को तेजोहीन समझ धर्मचर्चा में पराजित किया । फलतः बहुत से आजीविक - स्थविर गोशालक का साथ छोड़ भगवान् की शरण में आ गए।
गोशालक ने भगवान् को तेजोलेश्या के प्रहार मारना चाहा था, किन्तु वह उसी के लिए घातक बन गई । वह उन्मत्त की तरह प्रलाप, मद्यपान, नाच-गान आदि करने लगा। अपने दोषों के ढँकने के लिए वह चरमपान, चरमगान आदि ८ चरमों की मनगढन्त प्ररूपणा करने लगा । अयंपुल नामक आजीविकोपासक गोशालक की उन्मत्त चेष्टाएँ देख विमुख होने वाला था, उसे स्थविरों ने ऊटपटांग समझाकर पुन: गोशालकमत में स्थिर किया ।
गोशालक ने अपना अन्तिम समय निकट जान कर अपने स्थविरों को निकट बुलाकर धूमधाम से शवयात्रा निकालने तथा मरणोत्तर क्रिया करने का निर्देश शपथ दिलाकर किया। किन्तु जब सातवीं रात्रि व्यतीत हो रही थी तभी गोशालक को सम्यक्त्व उपलब्ध हुआ और उसने स्वयं आत्मनिन्दापूर्वक अपने कुकृत्यों तथा उत्सूत्र- प्ररूपणा का रहस्योद्घाटन किया और मरण के अनन्तर अपने शव की विडम्बना करने का निर्देश दिया। स्थविरों ने उसके आदेश का औपचारिक पालन ही किया ।
इसके पश्चात् भगवान् शरीर में पित्तज्वर का प्रकोप, लोकापवादक सुन सिंह अनगार को शोक, भगवान् द्वारा मन:समाधान, रेवती के यहाँ से औषध लाने का आदेश तथा औषध सेवन से रोगोपशमन, भगवान् के आरोग्यलाभ से चतुर्विध संघ, देव-देवी - दानव-मानवादि सबको प्रसन्नता हुई ।
शतक के उपसंहार में गौतमस्वामी के प्रश्न के उत्तर में भगवान् ने गोशालक के भावी जन्मों की झांकी बतलाकर सभी योनियों और गतियों में अनेक बार भ्रमण करने के पश्चात् क्रमशः आराधक होकर महाविदेह क्षेत्र में दृढप्रतिज्ञ केवली होकर अन्त में सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होने का उज्ज्वल भविष्य कथन किया है।
प्रस्तुत शतक से आजीविक सम्प्रदाय के सिद्धान्त और इतिहास का पर्याप्त परिचय मिलता है।