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चौदहवाँ शतक : उद्देशक - १०
हैं।
[उ. ] हाँ, ( गौतम ! ) वे जानते देखते हैं । यहाँ तक कहना चाहिए ।
भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है; यों कह कर यावत् गौतम स्वामी विचरण करते
विवेचन — प्रस्तुत १३ सूत्रों (सू. १२ से १४ तक) में केवली और सिद्ध के द्वारा रत्नप्रभापृथ्वी से लेकर ईषत्प्राग्भारापृथ्वी तक के तथा एक परमाणुपुद्गल तथा द्विप्रदेशी स्कन्ध से लेकर अनन्तप्रदेशी स्कन्ध तक के जानने-देखने के सम्बन्ध में प्रश्नोत्तर पूर्ववत् किए गए हैं । केवली शब्द से आशय – यहाँ भवस्थ केवली से है, क्योंकि सिद्ध के विषय में आगे पृथक् प्रश्न किया गया है।
॥ चौदहवाँ शतक, दसवाँ उद्देशक समाप्त ॥
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॥ चौदहवाँ शतक सम्पूर्ण ॥
१. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) पृ. ६/७ - ६८८ २. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६५८