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________________ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [१९ प्र.] भगवन् ! क्या केवली भगवान् ग्रैवेयकविमान को 'ग्रैवेयकविमान है ' — इस प्रकार जानते देखते हैं ? ४३८ [१९ उ.] हाँ, गौतम ! पूर्ववत् समझना चाहिए । २०. एवं अणुत्तरविमाणे वि । [२०] इसी प्रकार (पांच) अनुत्तर विमानों के ( जानने-देखने के) विषय में ( कहना चाहिए ।) २१. केवली णं भंते ! ईसिपब्भारं पुढविं 'ईसीपब्भारपुढवी' ति जाणति पासति ? एवं चेव । [ २१ प्र.] भगवन् ! क्या केवलज्ञानी ईषत्प्राग्भारापृथ्वी को 'ईषत्प्राग्भारापृथ्वी है ' — इस प्रकार जानतेदेखते हैं ? [ २१ उ.] ( हाँ, गौतम ! ) पूर्ववत् समझना चाहिए। २२. केवलि णं भंते ! परमाणुपोग्गलं 'परमाणुपोग्गले' त्ति जाणति पासति ? एवं चेव । [२२ प्र.] भगवन् ! क्या केवलज्ञानी परमाणुपुद्गल को 'यह परमाणुपुद्गल हैं ' देखते हैं ? - इस प्रकार जानते [ २२ उ.] इस विषय में भी पूर्ववत् समझना चाहिए । २३. एवं दुपदेसियं खंधं । [२३] इसी प्रकार द्विप्रदेशी स्कन्ध के विषय में समझना चाहिए। २४. एवं जाव जहा णं भंते! केवली अणंतपदेसियं खंधं 'अणंतपदेसिए खंधे' त्ति जाणति पासति तहा णं सिद्धे वि अणंतपदेसियं जाव पासति ? हंता, जाणति पासति । सेवं भंते! सेवं भंते ! ति० । ॥ चोद्दसमे सए : दसमो उद्दसेओ समत्तो ॥ १४-१०॥ ॥ चोद्दसमं सयं समत्तं ॥ १४ ॥ [२४] इसी प्रकार यावत् — [प्र.] भगवन् ! जैसे केवली, अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध को, 'यह अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध है' – इसी प्रकार जानते देखते हैं, क्या वैसे ही सिद्ध भी अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध को 'अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध है', इस प्रकार जानते-देखते हैं ?
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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