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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
[१९ प्र.] भगवन् ! क्या केवली भगवान् ग्रैवेयकविमान को 'ग्रैवेयकविमान है ' — इस प्रकार जानते
देखते हैं ?
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[१९ उ.] हाँ, गौतम ! पूर्ववत् समझना चाहिए ।
२०. एवं अणुत्तरविमाणे वि ।
[२०] इसी प्रकार (पांच) अनुत्तर विमानों के ( जानने-देखने के) विषय में ( कहना चाहिए ।) २१. केवली णं भंते ! ईसिपब्भारं पुढविं 'ईसीपब्भारपुढवी' ति जाणति पासति ?
एवं चेव ।
[ २१ प्र.] भगवन् ! क्या केवलज्ञानी ईषत्प्राग्भारापृथ्वी को 'ईषत्प्राग्भारापृथ्वी है ' — इस प्रकार जानतेदेखते हैं ?
[ २१ उ.] ( हाँ, गौतम ! ) पूर्ववत् समझना चाहिए।
२२. केवलि णं भंते ! परमाणुपोग्गलं 'परमाणुपोग्गले' त्ति जाणति पासति ?
एवं चेव ।
[२२ प्र.] भगवन् ! क्या केवलज्ञानी परमाणुपुद्गल को 'यह परमाणुपुद्गल हैं ' देखते हैं ?
- इस प्रकार जानते
[ २२ उ.] इस विषय में भी पूर्ववत् समझना चाहिए ।
२३. एवं दुपदेसियं खंधं ।
[२३] इसी प्रकार द्विप्रदेशी स्कन्ध के विषय में समझना चाहिए।
२४. एवं जाव जहा णं भंते! केवली अणंतपदेसियं खंधं 'अणंतपदेसिए खंधे' त्ति जाणति पासति तहा णं सिद्धे वि अणंतपदेसियं जाव पासति ?
हंता, जाणति पासति ।
सेवं भंते! सेवं भंते ! ति० ।
॥ चोद्दसमे सए : दसमो उद्दसेओ समत्तो ॥ १४-१०॥ ॥ चोद्दसमं सयं समत्तं ॥ १४ ॥
[२४] इसी प्रकार यावत् — [प्र.] भगवन् ! जैसे केवली, अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध को, 'यह अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध है' – इसी प्रकार जानते देखते हैं, क्या वैसे ही सिद्ध भी अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध को 'अनन्तप्रदेशिक स्कन्ध है', इस प्रकार जानते-देखते हैं ?