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चौदहवां शतक : उद्देशक-१०
४३७ [१२ उ.] हाँ (गौतम ! ) वे जानते-देखते हैं।
१३. जहा णं भंते ! केवली इमं रयणप्पभं पुढविं 'रयणप्पभपुढवी' ति जाणति पासति तहा णं सिद्धे वि रयणप्पभं पुढविं 'रयणप्पभपुढवी' ति जाणति पासति ?
हंता, जाणति पासति।
[१३ प्र.] भगवन् ! जिस प्रकार केवली इस रत्नप्रभापृथ्वी को 'यह रत्नप्रभापृथ्वी है', इस प्रकार जानतेदेखते हैं, उसी प्रकार क्या सिद्ध भी इस रत्नप्रभापृथ्वी को, यह रत्नप्रभापृथ्वी है, इस प्रकार जानते-देखते हैं ?
[१३ उ.] हाँ (गौतम ! ) वे जानते-देखते हैं। १४. केवली णं भंते ! सक्करप्पभं पुढविं 'सक्करप्पभपुढवी' ति जाणति पासति ? एवं चेव।
[१४ प्र.] भगवन् ! केवली, शर्कराप्रभापृथ्वी को, 'यह शर्कराप्रभापृथ्वी है ?'—इस प्रकार जानतेदेखते हैं ? . [१४ उ.] हाँ, गौतम ! उसी प्रकार (केवली और सिद्ध दोनों के विषय में पूर्ववत्) समझना चाहिए।
१५. एवं जाव अहेसत्तमा। [१५] इसी प्रकार अध:सप्तमपृथ्वी तक (पूर्वोक्त रूप से दोनों के विषय में) समझना चाहिए। १६. केवली णं भंते ! सोहम्मं कप्पं 'सोहम्मकप्पे' ति जाणति पासति ? हंता जाणति० । एवं चेव। [१६ प्र.] भगवन् ! क्या केवलज्ञानी सौधर्मकल्प को 'यह सौधर्मकल्प है'—इस प्रकार जानते-देखते
[१६ उ.] हाँ, गौतम ! वे जानते-देखते हैं, इसी प्रकार सिद्धों के विषय में भी कहना चाहिए। १७, एवं ईसाणं। [१७] इसी प्रकार ईशान देवलोक के जानने-देखने के विषय में जानना चाहिए। १८. एवं जाव अच्चुयं।
[१८] इसी प्रकार (सनत्कुमार देवलोक से लेकर) यावत् अच्युतकल्प (तक के जानने-देखने) के विषय में कहना चाहिए।
१९. केवली णं भंते ! गेवेजविमाणे 'गेवेजविमाणे' त्ति जाणति पासति ? एवं चेव।