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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
९. केवली णं भंते ! उम्मिसेज वा निमिसेज वा ? हंता, उम्मिसेज वा निमिसेज वा, एवं चेव। [९ प्र.] भगवन् ! केवलज्ञानी अपनी आँखें खोलते हैं, अथवा मूंदते हैं ?
[९ उ.] हाँ, गौतम ! वे आँखें खोलते और बन्द करते हैं। इसी प्रकार सिद्ध के विषय में पूर्ववत् इन दोनों बातों का निषेध समझना चाहिए।
१०. एवं आउटेज वा पसारेज वा। . [१०] इसी प्रकार (केवलज्ञानी शरीर को) संकुचित करते हैं और पसारते (फैलाते) भी हैं। ११. एवं ठाणं वा सेजं वा निसीहियं वा चेएजा।
[११] इसी प्रकार वे खड़े रहते (अथवा स्थिर रहते अथवा बैठते या करवट बदलते-लेटते) हैं; वसति में रहते हैं (निवास करते हैं) एवं निषीधिका (अल्पकाल के लिए निवास) करते हैं।
(सिद्ध भगवान् के विषय में पूर्वोक्त कारणों से इन सब बातों का निषेध समझना चाहिए।)
विवेचन—केवली एवं सिद्ध के विषय में भाषादि ९ बातों सम्बन्धी प्रश्नोत्तर—प्रस्तुत ५ सूत्रों (सू. ७ से ११ तक) में केवली और सिद्ध के विषय में—भाषण, प्रश्न का उत्तर-प्रदान, नेत्र-उन्मेष, नेत्र-निमेष
आकुंचन, प्रसारण तथा स्थिर रहना, निवास करना, अल्पकालिक निवास करना, इन ९ प्रश्नों का सहेतुक उत्तर क्रमशः विधि-निषेध के रूप में दिया गया है।
कठिन शब्दार्थ-भासेज—बिना पूछे बोलते हैं। वाग्गरेज—पूछने पर प्रश्न का उत्तर देते हैं। उम्मिसेज—आँखें खोलते हैं। निमिसेज—आँखे मूंदते हैं। आउटेज-आकुंचन करते, सिकोड़ते हैं। ठाणं-खड़े होना या स्थिर होना, बैठना, करवट बदलना या लेटना। सेजं—निवास (वसति) निसीहियंनिषीधिका—अल्पकालिक निवास (वसति), चेएज्जा—करते हैं। केवली द्वारा नरकपृथ्वी से लेकर ईषत्प्राग्भारापृथ्वी तथा अनन्तप्रदेशी स्कन्ध को जानने देखने की प्ररूपणा
१२. केवली णं भंते ! इमं रयणप्पभं पुढविं 'रयणप्पभपुढवी' ति जाणति पासति ? हंता, जाणति पासति। [१२ प्र.] भगवन् ! क्या केवलज्ञानी रत्नप्रभापृथ्वी को 'यह रत्नप्रभापृथ्वी है' इस प्रकार जानते-देखते
हैं?
१. वियाहपण्णत्तित्तं (मूलपाठ-टिप्पण युक्त) पृ. ६८७ २. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६५७-६५८