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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र श्रामण्यपर्याय सुख की देवसुख के साथ तुलना
१७. जे इमे भंते ! अजत्ताए समणा निग्गंथा विहरंति एते णं कस्स तेयलेस्सं वीयीवयंति ?
गोयमा ! मासपरियाए समणे निग्गंथे वाणमंतराणं देवाणं तेयलेस्स वीयीवयंति। दुमासपरियाए समणे निग्गंथे असुरिंदवज्जियाणं भवणवासीणं देवाणं तेयलेस्सं वीयीवयंति। एवं एतेणं अभिलावेणं तिमासपरियाए समणे० असुरकुमाराणं देवाणं (? असुरिंदाणं) तेय०। चतुमासपरियाए स० गहनक्खतारारूवाणं जोतिसियाणं देवाणं तेय०। पंचमासपरियाए स० चंदिम-सूरियाणं जोतिसिंदाणं जोतिसराईण तेय०। छम्मासपरियाए स० सोधम्मीसाणाणं देवाणं० । सत्तमासपरियाए० सणंकुमारमाहिंदाणं देवाणं० । अट्ठमासपरियाए बंभलोग-लंतगाणं देवाणं तेयले०। नवमासपरियाए समणे० महासुक्क-सहस्साराणं देवाणं तेय०।दसमासपरियाए सम० आणय-पाणय-आरण-अच्चुयाणं देवाणं। एक्कारसमासपरियाए० गेवेजगाणं देवाणं०। बारसमासपरियाए समणे निग्गंथे अणुत्तरोववातियाणं देवाणं तेयलेस्सं वीयीवयति। तेणं परं सुक्के सुक्काभिनातिए भवित्ता ततो पच्छा सिज्झति जाव अंतं करेति। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति जाव विहरति।
॥चोद्दसमे सए : नवमो उद्देसओ समत्तो ॥१४-९॥ . __[१७ प्र.] भगवन् ! जो ये श्रमण निम्रर्थ आर्यत्वयुक्त (पापरहित) होकर विचरण करते हैं, वे किसकी तेजोलेश्या (तेज-सुख) का अतिक्रमण करते हैं ? (अर्थात्-इन श्रमण निर्ग्रन्थों का सुख, किनके सुख.से बढ़कर-विशिष्ट या अधिक है ?)
[१७ उ.] गौतम ! एक मास की दीक्षापर्याय वाला श्रमण-निर्ग्रन्थ वाणव्यन्तर देवों की तेजोलेश्या (सुखासिका) का अतिक्रमण करता है; (अर्थात्—वह वाणव्यन्तर देवों से भी अधिक सुखी है) दो मास की दीक्षा-पर्याय वाला श्रमण-निर्ग्रन्थ असुरेन्द्र (चमरेन्द्र और बलीन्द्र) के सिवाय (समस्त) भवनवासी देवों की तेजोलेश्या का अतिक्रमण करता है। इसी प्रकार इसी पाठ (अभिलाप) द्वारा तीन मास की दीक्षा-पर्याय वाला श्रमण-निर्ग्रन्थ, (असुरेन्द्र-सहित) असुरुकुमार देवों की तेजोलेश्या का अतिक्रमण करता है। चार मास की दीक्षा-पर्याय वाला श्रमण-निर्ग्रन्थ ग्रहगण-नक्षत्र-तारारूप ज्योतिष्केन्द्र ज्योतिष्कराज चन्द्र और सूर्य की तेजोलेश्या का अतिक्रमण करता है। छह मास की दीक्षा-पर्याय वाला श्रमण-निर्ग्रन्थ सौधर्म और ईशानकल्पवासी देवों की तेजोलेश्या का अतिक्रमण करता है। सात मास की दीक्षा-पर्याय वाला श्रमण-निर्ग्रन्थ सनत्कुमार और माहेन्द्र देवों की तेजोलेश्या का; आठ मास की दीक्षा-पर्याय वाला श्रमण-निर्ग्रन्थ ब्रह्मलोक और लान्तक देवों की तेजोलेश्या का; नौ मास की दीक्षा-पर्याय वाला श्रमण-निर्ग्रन्थ महाशुक्र और सहस्रार देवों की तेजोलेश्या का; दस मास की दीक्षा-पर्याय वाला श्रमण-निर्ग्रन्थ आनत, प्राणत, आरण और अच्युत देवों की तेजोलेश्या का; ग्यारह मास की दीक्षा-पर्याय वाला श्रमण-निर्ग्रन्थ ग्रैवेयक देवों की तेजालेश्या का और बारह मास की दीक्षा