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चौदहवाँ शतक : उद्देशक - ९
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फूलों (जपाकुसुम) के पुंज के समान लाल (रक्त) बालसूर्य को देखा। सूर्य को देखकर गौतमस्वामी को श्रद्धा उत्पन्न हुई, यावत् उन्हें कौतुहल उत्पन्न हुआ, फलत: जहाँ श्रमण भगवान् महावीर विराजमान थे, वहाँ उनके निकट आए और यावत् उन्हें वन्दन - नमस्कार किया और फिर इस प्रकार पूछा—
भगवन् ! सूर्य क्या है ? तथा सूर्य का अर्थ क्या है ?
[१३ उ.] सूर्य शुभ पदार्थ है तथा सूर्य का अर्थ भी शुभ है।
१४. किंमिदं भंते ! सूरिए, किमिदं भंते ! सूरियस्स पभा ? एवं चेव ।
[१४ प्र.] भगवन् ! ‘सूर्य' क्या है और 'सूर्य की प्रभा' क्या है ? [१४ उ.] गौतम ! पूर्ववत् समझना चाहिए ।
१५. एवं छाया ।
[१५] इसी प्रकार छाया (प्रतिबिम्ब) के विषय में जानना चाहिए । १६. एवं लेस्सा।
[१६] इसी प्रकार लेश्या ( सूर्य का तेज:पुंज या प्रभा) के विषय में जानना चाहिए।
विवेचन —सूर्य शब्द का अन्वर्थ, प्रसिद्धार्थ एवं फलितार्थ — सूर्य क्या पदार्थ है और सूर्य शब्द का क्या अर्थ है ? इस प्रकार श्री गौतमस्वामी के पूछे जाने पर भगवान् ने सूर्य का अन्वर्थ 'शुभ' वस्तु बताया, अर्थात् — सूर्य एक शुभस्वरूप वाला पदार्थ है, क्योंकि सूर्य के विमान पृथ्वीकायिक होते हैं, इन पृथ्वीकायिक जीवों के आतप-नामकर्म की पुण्यप्रकृति का उदय होता है। लोक में भी सूर्य प्रशस्त (उत्तम) रूप से प्रसिद्ध है तथा यह ज्योतिष्चक्र का केन्द्र है। सूर्य का शब्दार्थ फलितार्थ के रूप में इस प्रकार है
'सूरेभ्यो हितः सूर्यः '- इस व्युत्पत्ति के अनुसर जो क्षमा, दान, तप और युद्ध आदि विषयक शूरवीरों के लिए हितकर (शुभ प्रेरणादायक ) होता है, वह सूर्य है । अथवा 'तत्र साधुः ' इस सूत्रानुसार 'शूरों में जो साधु हो' वह सूर्य है । इसलिए सूर्य का सभी प्रकार से 'शुभ अर्थ' घटित होता है। सूर्य की प्रभा, कान्ति और तेजोलेश्या भी शुभ है प्रशस्त है।
कठिन शब्दार्थ –— अचिरुग्गयं — तत्काल उदित । जासुमणाकुसुम- पुंजप्पगासं— जासुमन नामक वृक्ष के पुष्प पुञ्ज के समान । किमिदं— क्या है ? पभा — प्रभा, दीप्ति । छाया— शोभा या प्रतिबिम्ब । लेश्या - वर्ण अथवा प्रकाश का समूह।
१. (क) भगवती. प्रमेयचन्द्रिका टीका, भा. ११, पृ. ४०८ (ख) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६५६
२. वही, पत्र, ६५६