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चौदहवां शतक : उद्देशक-८
[२६ उ.] गौतम ! वे दस प्रकार के कहे गए हैं । यथा-(१) अन्न-जृम्भक, (२) पान-जृम्भक, (३) वस्त्र-जृम्भक, (४) लयन-जृम्भक, (५) शयन-जृम्भक, (६) पुष्प-जृम्भक, (७) फल-जृम्भक, (८) पुष्प-फल-जृम्भक, (९) विद्या-जृम्भक और (१०) अव्यक्त-जृम्भक।
२७. जंभगा णं भंते ! देवा कहिं वसहिं उर्वति ?
गोयमा ! सव्वेसु चेव दीहवेयड्ढेसु चित्तविचित्तजमगपव्वएसु कंचणपव्वएसु य, एत्थ णं जंभगा देवा वसहिं उर्वति।
[२७ प्र.] भगवन् ! जृम्भक देव कहाँ निवास करते हैं ?
[२७ उ.] गौतम ! जृम्भक देव सभी दीर्घ (लम्बे-लम्बे) वैताढ्य पर्वतों में, चित्र-विचित्र यमक पर्वतों में तथा कांचन पर्वतों में निवास करते हैं।
२८. जंभगा णं भंते ! देवाणं केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता? गोयमा ! एगं पलिओवमं ठिती पन्नत्ता। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति जाव विरहति।
॥चोद्दसमे सए : अट्ठमो उद्देसओ समत्तो ॥१४-८॥ [२८ प्र.] भगवन् ! जृम्भक देवों की स्थिति कितने काल की कही गई है ? [२८ उ.] गौतम ! जृम्भक देवों की स्थिति एक पल्योपम की कही गई है। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है; यों कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरते हैं।
विवेचन-जृम्भक देव : जो अपनी इच्छानुसार स्वच्छन्द प्रवृत्ति करतें हैं और सतत क्रीड़ा आदि में रत रहते हैं, ऐसे तिर्यग्लोकवासी व्यन्तर जृम्भक देव हैं। ये अतीव कामक्रीडारत रहते हैं। ये वैरस्वामी की तरह वैक्रियलब्धि आदि प्राप्त करके शाप और अनुग्रह करने में समर्थ होते हैं। इस कारण जिस पर प्रसन्न हो जाते हैं उसे धनादि से निहाल कर देते हैं और जिन पर कुपित होते हैं, उन्हें अनेक प्रकार से हानि भी पहुंचाते हैं। इनके १० भेद हैं । (१) अन्न-जृम्भक-भोजन को सरस-नीरस कर देने या उसकी मात्रा बढ़ा-घटा देने की शक्ति वाले देव, (२) पान-जृम्भक-पानी को घटाने-बढ़ाने; सरस-नीरस कर देने वाले देव। (३) वस्त्रजृम्भक-वस्त्र को घटाने-बढ़ाने आदि की शक्ति वाले देव । (४) लयन-जृम्भक-घर-मकान आदि की सुरक्षा करने वाले देव। (५) शयन-जृम्भक-शय्या आदि के रक्षक देव। (६-७-८) पुष्प-जृम्भक, फल-जृम्भक एवं पुष्प-फल-ज़म्भक-फूलों, फलों एवं पुष्प-फलों की रक्षा करने वाले देव। कहीं-कहीं ८वें पुष्प-फल जृम्भक के बदले 'मंत्र-जृम्भक' नाम मिलता है। (९) विद्या-जृम्भक-देवों के मंत्रोंविद्याओं की रक्षा करने वाले देव और (१०) अव्यक्त-जृम्भक-सामान्यतया, सभी पदार्थों की रक्षा आदि करने वाले देव। कहीं-कहीं इसके स्थान में अधिपति-जृम्भक' पाठ भी मिलता है, जिसका अर्थ होता है