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________________ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [ २४-२ उ.] गौतम ! शक्रेन्द्र उस पुरुष के मस्तक को छिन्न- छिन्न (खण्ड-खण्ड) करके ( कमण्डलु में डालता है। या भिन्न-भिन्न (वस्त्र की तरह चीर कर टुकड़े-टुकड़े) करके डालता है। अथवा वह कूट-कूट (ऊखल में तिलों की तरह कूट) कर डालता है । या (शिला पर लोढ़ी से पीसकर चूर्ण कर करके डालता है । तत्पश्चात् शीघ्र ही मस्तक के उन खण्डित अवयवों को एकत्रित करता है और पुनः मस्तक बना देता है। इस प्रक्रिया में उक्त पुरुष के मस्तक का छेदन करते हुए भी वह ( शक्रेन्द्र) उस पुरुष को थोड़ी या अधिक पीड़ा नहीं पहुँचाता। इस प्रकार सूक्ष्मतापूर्वक मस्तक काट कर वह उसे कमण्डलु में डालता है । ४२४ विवेचन — प्रस्तुत सूत्र ( २४, १-२ ) में शक्रेन्द्र द्वारा किसी के मस्तक को छिन्न-भिन्न करके कमण्डलु में डाल देने की विशिष्ट शक्ति और उसकी प्रक्रिया का निरूपण किया गया है। जृम्भक देवों का स्वरूप, भेद, स्थिति २५. [१] अत्थि णं भंते ! जंभया देवा, जंभया देवा ? हंता, अत्थि । [२५-१ प्र.] भगवन् ! क्या [ स्वच्छन्दाचारी की तरह चेष्टा करने वाले ] जृम्भक देव होते हैं ? [ २५ - १ उ.] हाँ, गौतम ! होते हैं। [२] से केणट्टेणं भंते! एवं वुच्चइ 'जंभया देवा, जंभया देवा ?' गोयमा ! जंभगाणं देवा निच्चं पमुदितपक्कीलिया कंदप्परतिमोहणसीला, जे णं ते देवे कुद्धे पासेज्जा से णं महंतं अयसं पाउणेज्जा, जे णं ते देवे तुट्ठे पासेज्जा से णं महंतं जसं पाउणेज्जा, से तेणट्टेणं गोया ! 'जंभगा देवा, जंभगा देवा' । [२५-२ प्र.] भगवन् वे 'जृम्भक देव किस कारण कहलाते हैं ? [२५-२ उ.] गौतम ! जृम्भक देव, सदा प्रमोदी, अतीव क्रीडाशील, कन्दर्प में रत और मोहन (मैथुनसेवन) शील होते हैं। जो व्यक्ति उन देवों को क्रुद्ध हुए देखता है, वह महान् अपयश प्राप्त करता है और जो उन देवों को तुष्ट (प्रसन्न हुए देखता है, वह महान् यश को प्राप्त करता है। इस कारण, हे गौतम! वे जृम्भक देव कहलाते हैं । २६. कतिविहा णं भंते! जंभगा देवा पण्णत्ता ? गोयमा ! दसविहा पन्नत्ता, तं जहा - अन्नजंभगा, पाणजंभगा, वत्थजंभगा, लेणजंभगा, सयणजंभगा, पुप्फजंभगा, फलजंभगा, पुप्फफलजंभगा, विज्जाजंभगा, अवियत्तिजंभगा। [ २६ प्र.] भगवन् ! जृम्भक देव कितने प्रकार के कहे गये हैं ? १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६५४
SR No.003444
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 03 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1985
Total Pages840
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size16 MB
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