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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
राजा आदि नायक के विषय में जृम्भक देव।
निवासस्थान—पांच भरत, पांच ऐरवत और पांच महाविदेह, इन १५ क्षेत्रों में १७० दीर्घ वैताढ्यपर्वत हैं। प्रत्येक क्षेत्र में एक-एक पर्वत है तथा महाविदेह क्षेत्र के प्रत्येक विजय में एक-एक पर्वत है।
देवकुरु में शीतोदा नदी के दोनों तटों पर चित्रकूटपर्वत हैं। उत्तरकुरु में शीतानदी के दोनों तटों पर यमकयमक पर्वत हैं । उत्तरकुरु में शीतानदी से सम्बन्धित नीलवान् आदि ५ द्रह हैं। उनके पूर्व-पश्चिम दोनों तटों पर दस-दस कांचनपर्वत हैं। इस प्रकार उत्तरकुरु में १०० कांचनपर्वत हैं। देवकुरु में शीतोदा नदी से सम्बन्धित निषध आदि ५ द्रहों के दोनों तटों पर दस-दस कांचनपर्वत हैं। इस तरह ये भी १०० कांचनपर्वत हुए। दोनों मिलकर २०० कांचनपर्वत हैं। इन पर्वतों पर ज़म्भक देव रहते हैं।
॥ चौदहवां शतक : आठवाँ उद्देशक समाप्त॥
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१. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ६५४ २. (क) वही. अ. वृत्ति, पत्र ६५४-६५५
(ख) भगवती. (हिन्दी-विवेचन) भा. ५, पृ. २३५३